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Shri Ashtapad Maha Tirth
आशरे एक लाख ऊपरे रे, गाउ पचासी हजार रे मनवसिया।
सिद्धगिरिथी छे वेगलो रे, अष्टापद जयकार रे गुणवसिया।।११।। * श्री अष्टापद तीर्थ पर चौबीस जिनमूर्तियों का क्रम :
श्री अष्टापद पर्वत पर आये हुए - 'सिंहनिषद्या' नामक जिनप्रासाद में श्री भरतचक्रवर्ती द्वारा स्थापित की हुई चौबीस जिनमूर्तियों का क्रम दिशाओं की अपेक्षा निम्नलिखित प्रमाण में है-- दक्षिण दिशा में चार, पश्चिम दिशा में आठ, उत्तर दिशा में दश, तथा पूर्व दिशा में दो। सब मिलकर चौबीस जिनमूर्तियाँ हैं ।। इस विषय में 'सिद्धाणं बुद्धाणं (सिद्धस्तव)' सूत्र में कहा है कि -
चत्तारि अट्ठ दस दोय, वंदिया जिणवरा चउव्वीसं।
परमट्टनिटिअट्ठा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ।।५।। दक्षिण दिशा में - श्री सम्भवनाथ, श्री अभिनन्दन स्वामी, श्री सुमतिनाथ, श्री पद्मप्रभ जिन परमात्मा की मूर्तियाँ हैं।
पश्चिम दिशा में - श्री सुपार्श्वनाथ, श्री चन्द्रप्रभ स्वामी, श्री सुविधिनाथ, श्री शीतलनाथ, श्री श्रेयांसनाथ, श्री वासुपूज्य स्वामी, श्री विमलनाथ, श्री अनंतनाथ जिन परमात्मा की मूर्तियाँ हैं।
उत्तर दिशा में - श्री धर्मनाथ, श्री शान्तिनाथ, श्री कुन्थुनाथ, श्री अरनाथ, श्री मल्लिनाथ, श्री मुनिसुव्रत स्वामी, श्री नमिनाथ, श्री नेमिनाथ, श्री पार्श्वनाथ तथा श्री महावीर स्वामी जिन परमात्मा की मूर्तियाँ हैं।
पूर्व दिशा में - श्री ऋषभदेव तथा श्री अजितनाथ जिन की मूर्तियाँ हैं।
* श्री अष्टापद तीर्थ की ऊँचाई :
जम्बूद्वीप की दक्षिण दिशा के दरवाजे से वैताढ्य पर्वत के मध्य भाग में अयोध्या नगरी श्री भरत महाराजा की है।
जम्बूद्वीप की उत्तर दिशा के दरवाजे से तथा वैताढ्य पर्वत एवं ऐरावत के मध्य भाग में अयोध्या नगरी (विनीता) है, जो बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी है।
अयोध्या नगरी के समीप श्री अष्टापद पर्वत बत्तीस कोस ऊँचा है। इस विषय के सम्बन्ध में श्री दीपविजयजी कृत अष्टापद की पूजा के अन्तर्गत जलपूजा में कहा है कि -
जंबूना दक्षिण दरवाजेथी, वैताढ्य थी मध्यम भागे रे। नयरी अयोध्या भरतजी जाणो, कहे गणधर महाभाग रे। धन. ॥८॥ जंबूना उत्तर दरवाजेथी, वैताढ्य थी मध्यम भागे रे। अयोध्या ऐरावतनी जाणो, कहे गणधर महाभाग रे। धन. ।।९।। बार योजन छे लांबी पहोली, नव योजन ने प्रमाण रे। नयरी अयोध्या नजीक अष्टापद, बत्रीश कोश ऊँचाण रे।।धन. ।।१०।।
* चत्तारि-अट्ठ-दस-दोय जिणंद मूर्तियों की स्थापना एवं संकलन :
श्री अष्टापदगिरि पर दस हजार मुनिवरों के साथ प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान् ने महा वदी तेरस के दिन निर्वाण-मोक्ष प्राप्त किया। वहाँ पर देवों ने स्तूप बनाये।
Shri Ashtapad Tirth
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