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अध्याय -4 निश्चयनय के विषय को छोड़कर विद्वान व्यवहार के द्वारा प्रवृत्ति करते हैं; किन्तु निज शुद्धात्मभूत परमार्थ के आश्रित यतियों के ही कर्मों का क्षय होता है।
Leaving aside the ultimate point of view, wise ones take on the empirical way, but the destruction of karmas takes place only to those ascetics who embrace the pure, ultimate nature of the Real Self.
रत्नत्रय की मलिनता के कारण -
वत्थस्स सेदभावो जह णासदि मलविमेलणोच्छण्णो। मिच्छत्तमलोच्छण्णं तह सम्मत्तं खु णादव्वं॥ (4-13-157)
वत्थस्स सेदभावो जह णासदि मलविमेलणोच्छण्णो। अण्णाणमलोच्छण्णं तह णाणं होदि णादव्वं॥ (4-14-158)
वत्थस्स सेदभावो जह णासदि मलविमेलणोच्छण्णो। कस्सायमलोच्छण्ण तह चारित्तं पि णादव्वं॥ (4-15-159)
जैसे मैल से व्याप्त हुआ वस्त्र का श्वेतभाव नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार मिथ्यात्वरूपी मैल से व्याप्त सम्यक्त्व निश्चय ही तिरोहित हो जाता है; ऐसा जानना चाहिये। जिस प्रकार मैल से व्याप्त हुआ वस्त्र का श्वेतभाव नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार
अज्ञानरूपी मैल से व्याप्त ज्ञान तिरोहित हो जाता है; ऐसा जानना चाहिये। जिस प्रकार मैल से व्याप्त हुआ वस्त्र का श्वेतभाव नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार कषाय से व्याप्त हुआ चारित्र तिरोहित हो जाता है; ऐसा जानना चहिये।
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