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अध्याय - 4
चउत्थो पुण्णपावाधियारो
MERIT AND DEMERIT
शुभ कर्म भी संसार का कारण है
कम्ममसुहं कुसीलं सुहकम्मं चावि जाणह सुसील । किह तं होदि सुसीलं जं संसारं पवेसेदि ॥
(4-1-145)
अशुभ कर्म कुशील (बुरा) है और शुभ कर्म सुशील (अच्छा ) है, ऐसा तुम जानते हो; किन्तु जो कर्म जीव को संसार में प्रवेश कराता है, वह किस प्रकार सुशील (अच्छा ) हो सकता है?
You know that wicked karma is undesirable, and virtuous karma is desirable. But how can the karma, which leads the jiva into the cycle of births and deaths (samsara), be considered desirable?
शुभाशुभ कर्मबन्ध के कारण हैं
सोवणियं पि णियलं बंधदि कालायसं पि जह पुरिसं । बंधदि एवं जीवं सुहमसुहं वा कदं कम्मं ॥
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(4-2-146)
जैसे सोने की बेड़ी भी पुरुष को बाँधती है और लोहे की बेड़ी भी बाँधती है। इसी प्रकार शुभ या अशुभ किया हुआ कर्म जीव को बाँधता है (दोनों ही बन्धनरूप हैं ) ।