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अध्याय - 2
परमार्थ जीव का स्वरूप -
अरसमरुवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसह। जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिविसंठाणं॥
(2-11-49)
जो रसरहित है, रूपरहित है, गंधरहित है, इन्द्रियों के अगोचर है, चेतना गुण से युक्त है, शब्दरहित है, किसी चिह्न या इन्द्रिय द्वारा ग्रहण नहीं होता और जिसका आकार बताया नहीं जा सकता, उसे जीव जानो।
The pure soul should be known as without taste, colour and smell, beyond perception though the senses, characterized by consciousness, without sound, cannot be apprehended through a symbol or a sense organ, and whose form or shape cannot be portrayed.
वर्णादि भाव जीव के परिणाम नहीं हैं -
जीवस्स णत्थि वण्णो ण वि गंधो ण वि रसो ण वि य फासो। ण वि रूवं ण सरीरं ण वि संठाणं ण संहणणं॥ (2-12-50)
जीवस्स णत्थि रागो ण वि दोसो णेव विज्जदे मोहो। णो पच्चया ण कम्मं णोकम्मं चावि से णत्थि॥ (2-13-51)
जीवस्स णत्थि वग्गो ण वग्गणा णेव फड्ढया केई। णो अज्झप्पट्ठाणा णेव य अणुभागठाणा वा॥ (2-14-52)
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