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अध्याय - 2
हैं, इस प्रकार केवली जिनेन्द्र भगवान ने कहा है। वे जीव हैं, ऐसा किस प्रकार कहा जा सकता है।
The above mentioned affective states are all result of the manifestation of karmic matter, so says the Omniscient Lord. How can these be called thejīva or Pure Self?
आठों कर्म पुद्गलमय हैं -
अट्टविहं पि य कम्मं सव्वं पोंग्गलमयं जिणा विंति। जस्स फलं तं वुच्चदि दुक्खं ति विपच्चमाणस्स॥ (2-7-45)
आठों प्रकार के समस्त कर्म पुद्गलमय हैं, ऐसा जिनेन्द्रदेव कहते हैं। पक कर उदय में आने वाले जिस कर्म का फल प्रसिद्ध दुःख है, ऐसा कहा है।
As pronounced by the Omniscient Lord, all the eight kinds of karmas are subtle material particles, and that the fruition of these karmas results into suffering that everyone recognizes.
व्यवहार नय से रागादि भाव जीव हैं -
ववहारस्स दरीसणमुवदेसो वण्णिदो जिणवरेहि। जीवा एदे सव्वे अज्झवसाणादओ भावा॥
(2-8-46)
ये समस्त अध्यवसानादिक भाव जीव हैं ऐसा जिनेन्द्रदेवों ने जो उपदेश दिया है, वह व्यवहार नय का कथन है।
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