________________
अध्याय - 2
दुदियो जीवाजीवाधियारो THE SOUL AND THE NON-SOUL
जीव के सम्बन्ध में विभिन्न मान्यतायें -
अप्पाणमयाणंता मूढा दु परप्पवादिणो केई। जीवं अज्झवसाणं कम्मं च तहा परूविंति॥
(2-1-39)
अवरे अज्झवसाणेसु तिव्वमंदाणुभावगं जीवं। मण्णंति तहा अवरे णोकम्मं चावि जीवो त्ति॥
(2-2-40)
कम्मस्सुदयं जीवं अवरे कम्माणुभागमिच्छति। तिव्वत्तणमंदत्तण गुणेहि जो सो हवदि जीवो॥
(2-3-41)
जीवो कम्मं उहयं दोण्णि वि खलु के वि जीवमिच्छति। अवरे संजोगेण दु कम्माणं जीवमिच्छंति॥ (2-4-42)
एवंविहा बहुविहा परमप्पाणं वदंति दुम्मेहा। ते ण परमट्टवादी णिच्छयवादीहि णिढिा॥
(2-5-43)
आत्मा को न जानते हुए परद्रव्य आत्मा को कहने वाले मूढ़ अज्ञानी तो रागादि अध्यवसान को और कर्म को जीव कहते हैं। अन्य कुछ लोग रागादि अध्यवसानों में तीव्र-मन्द तारतम्य स्वरूप शक्ति-माहात्म्य को जीव मानते हैं; तथा अन्य कोई नोकर्म-शरीरादि को भी जीव है ऐसा मानते हैं। अन्य कुछ लोग कर्म के उदय को जीव मानते हैं। कुछ लोग जो तीव्रता-मन्दता रूप गुणों से भेद को प्राप्त होता है, वह
23