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अध्याय - 10
निश्चय प्रतिक्रमण का स्वरूप -
कम्मं जं पुव्वकयं सुहासुहमणेयवित्थरविसेसं। तत्तो णियत्तदे अप्पयं तु जो सो पडिक्कमणं॥
(10-76-383)
पूर्व में किये हुए (मूलोत्तर प्रकृति रूप से) अनेक विस्तार वाले जो शुभ और अशुभ कर्म हैं, उनसे जो जीव अपने को दूर कर लेता है, वह जीव ही प्रतिक्रमण है।
The Self who drives himself away from the multitude of karmas, virtuous or wicked, done in the past, is certainly the real repentance.
निश्चय प्रत्याख्यान का स्वरूप -
कम्मं जं सुहमसुहं जम्हि य भावम्हि बज्झदि भविस्सं। तत्तो णियत्तदे जो सो पच्चक्खाणं हवदि चेदा॥
___(10-77-384)
और भविष्यकाल में जो शुभाशुभ कर्म जिस भाव के होने पर बँधता है, उस भाव से जो आत्मा निवृत्त होता है, वह आत्मा प्रत्याख्यान होता है।
And the Self who drives himself away from the future thoughtactivities that may cause bondage of karmas, virtuous or wicked, is certainly the real renunciation
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