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अध्याय 9
आत्मा निरपराध होता है, वह नि:शंक होता है। ऐसा आत्मा 'मैं (उपयोग-स्वरूप एक शुद्ध आत्मा) हूँ' इस प्रकार जानता हुआ (शुद्धात्मसिद्धिरूप) आराधना से सदा ही वर्तता है।
Attainment, self-devotion, fulfillment, achievement, and adoration are synonymous. The soul which is devoid of selfdevotion is a guilty soul. Only that soul which is not guilty is free from fear. Such a soul, knowing its true nature (pure consciousness), is always engrossed in the accomplishment of its pure nature.
विषकुम्भ और अमृतकुम्भ
पडिकमणं पडिसरणं पडिहरणं धारणा णियत्ती य । जिंदा गरुहा सोही अट्ठविहो होदि विसकुंभो ॥
अपडिकमणमपडिसरणमप्पडिहारो अधारणा चेव । अणियत्ती य अणिंदागरुहासोही अमयकुंभो ॥
(9-19-306)
(9-20-307)
प्रतिक्रमण, प्रतिसरण, परिहार, धारणा, निवृत्ति, निन्दा, गर्हा और शुद्धि - यह आठ प्रकार का विषकुम्भ है ( क्योंकि इसमें कर्तृत्व बुद्धि होती है) ।
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अप्रतिक्रमण, अप्रतिसरण, अपरिहार, अधारणा, अनिवृत्ति, अनिन्दा, अगर्हा और अशुद्धि - ये आठ अमृतकुम्भ हैं ( क्योंकि इसमें कर्तृत्व का निषेध है)।