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अध्याय -9
प्रज्ञा से भेद-विज्ञान होता है - जीवो बंधो य तहा छिजंति सलक्खणेहि णियदेहि। पण्णाछेदणएण दु छिण्णा णाणत्तमावण्णा॥
(9-7-294)
जीव तथा बन्ध ये दोनों अपने-अपने निश्चित लक्षणों के द्वारा पृथक् किये जाते हैं। प्रज्ञा रूपी छुरी के द्वारा छेदे हुए (पृथक् किये हुए) ये नानारूप हो जाते हैं (पृथक् हो जाते हैं)।
The Self and the karmic bondage are differentiated on the basis of their own intrinsic nature. These two are chiselled (separated) with the help of the instrument of selfdiscrimination.
भेद-विज्ञान होने पर जीव का कर्त्तव्य -
जीवो बंधो य तहा छिज्जंति सलक्खणेहि णियदेहिं। बंधो छेदेदव्वो सुद्धो अप्पा य घेत्तव्वो॥ (9-8-295)
जीव तथा बन्ध अपने-अपने निश्चित लक्षणों के द्वारा पृथक् किये जाते हैं। वहाँ बन्ध को तो (आत्मा से) पृथक् कर देना चाहिये और शुद्ध आत्मा को ग्रहण करना चाहिये।
The Self and the karmic bondage are differentiated (and separated) on the basis of their own intrinsic nature. The karmic bondage should be discarded and the pure soul ought to be realized.
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