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अध्याय -8
यदि वास्तव में अध्यवसान के निमित्त से जीव कर्मों से बँधते हैं और मोक्षमार्ग में स्थित वे कर्मों से मुक्त होते हैं, तब तू क्या करता है? (अर्थात् दूसरों को बाँधने-छोड़ने का तेरा अध्यवसान निष्प्रयोजन रहा)।
If, in reality, the living beings get bondages of karmas due to dispositions, and, treading on the path to liberation, they get dissociated from such bondages, then what is your role? (Meaning thereby that your dispositions concerning binding or releasing others are useless.)
जीव निज को पररूप मानता है -
सव्वे करेदि जीवो अज्झवसाणेण तिरियणेरइये। देवमणुवे य सव्वे पुण्णं पावं अणेयविहं॥
(8-32-268)
धम्माधम्मं च तहा जीवाजीवे अलोगलोगं च। सव्वे करेदि जीवो अज्झवसाणेण अप्पाणं॥
(8-33-269) (8.२२.७
जीव अध्यवसान के द्वारा तिर्यञ्च, नारक, देव और मनुष्य इन सब रूप और अनेक प्रकार के पुण्य और पाप इन सब रूप अपने आपको करता है। तथा उसी प्रकार जीव अध्यवसान के द्वारा धर्म-अधर्म, जीव-अजीव, लोक और अलोक इन सब रूप अपने को करता है।
The Self, due to his dispositions, identifies himself with various
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