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अध्याय -6
छट्टमो संवराधियारो
STOPPAGE OF KARMAS
भेदविज्ञान ही संवर का उपाय है -
उवओगे उवओगो कोहादिसु णत्थि को वि उवओगो। कोहे कोहो चेव हि उवओगे णत्थि खलु कोहो॥ (6-1-181)
अट्टवियप्पे कम्मे णोकम्मे चावि णत्थि उवओगो। उवओगम्हि य कम्मं णोकम्मं चावि णो अत्थि॥ (6-2-182)
एदं तु अविवरीदं णाणं जइया दु होदि जीवस्स। तइया ण किंचि कुव्वदि भावं उवओगसुद्धप्पा॥ (6-3-183)
उपयोग में उपयोग है, क्रोध आदि में कोई भी उपयोग नहीं है। और क्रोध में ही क्रोध है, निश्चय ही उपयोग में क्रोध नहीं है। आठ प्रकार के (ज्ञानावरणादि) कर्मों और (शरीरादि) नोकर्मों में भी उपयोग नहीं है और उपयोग में कर्म ओर नोकर्म भी नहीं है। जिस काल में जीव को ऐसा अविपरीत (सत्यार्थ) ज्ञान हो जाता है, तब उपयोग-स्वरूप शुद्धात्मा उपयोग के अतिरिक्त अन्य किसी भाव को नहीं करता।
Consciousness subsists on consciousness and there is no consciousness in anger etc. Anger subsists on anger and, surely, there is no anger in consciousness. There is no consciousness in eight kinds of karmas, like knowledge-obscuring karma, and the quasi-karmic matter (nokarma), and there is no karma and nokarma in consciousness. The time when the Self attains this
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