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________________ ६८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद सेवन करूँ । लेकिन आज मैने चिन्तवन किया वो मैं सपने में भी नहीं कर शकता । और फिर इस जन्म में मैंने मन से भी आज तक पुरुष की ईच्छा नहीं की । किसी भी तरह से सपने में भी उसकी अभिलाषा नहीं की, तो वाकई मैं दुराचारी पाप करने के स्वभाववाली अभागी हूँ, आड़ा-टेढ़ा झूठ सोचकर मैंने तीर्थंकर की आशातना की है । [११७०-११७३] तीर्थंकर भगवंत ने भी काफी कष्टकारी कठिन अति दुर्धर, उग्र, घोर मुश्किल से पालन किया जाए वैसा कठिन व्रत का उपदेश दिया है । तो त्रिविध त्रिविध से यह व्रत पालन करने के लिए कौन समर्थ हो शकता है ? वचन और काया से अच्छी तरह से आचरण किया जाने के बाद भी तीसरे मन से रक्षा करना मुमकीन नहीं है । या तो दुःख की फिक्र की जाती है । यह तो फिर भी सुखपूर्वक किया जाता है, जो मन से भी कुशील हुआ वो सर्व कार्य में कुशील माना जाता है । तो इस विषय में शंका करके अचानक मेरे पास जो यह स्खलना होकर दोष लगा, उसका मुजे प्रायश्चित् हुआ तो आलोचना करके जल्द उसका सेवन करूँ । [११४७-११७७] समग्र सती, शीलवंती के भीतर मैं पहली बड़ी साध्वी हूँ । रेखा समान मैं सब में अग्रेसर हूँ । उस प्रकार स्वर्ग में भी उद्घोषणा होती है । और मेरे पाँव की धूल को सब लोग वंदन करते है । क्योंकि उसकी रज से हरएक की शुद्धि होती है । उस प्रकार जगत में मेरी प्रसिद्धि हुई है । अब यदि मैं आलोचना हूँ । मेरा मानसिक दोष भगवंत के पास प्रकट करूँगा । तो मेरे भाई, माता, पिता यह बात सुनकर दुःखी होंगे, या तो प्रमाद से किसी भी तरह से मैंने मन से चिन्तवन किया उसे मैंने आलोचन किया केवल इतना सुनकर मेरे रिश्तेदारी वर्ग को कौन-सा दुःख होगा ? । [११७८-११८२] जितने में इस प्रकार चिन्तवन करके आलोयणा लेने के लिए तैयार हुई, उतने में खड़ी होती थी तब पाँव के तलवे में ढ़स करके एक काँटा चुभ गया । उस वक्त निःसत्वा निराश होकर साध्वी चिन्तवन करने लगी कि अरेरे ! इस जन्म में मेरे पाँव में कभी भी काँटा नहीं लगा था तो अब इस विषय में क्या (अशुभ) होगा ? या तो मैंने परमार्थ समजा की दो चीड़िया संघट्ट करती थी, उनकी मैंने अनुमोदना की उस वजह से मेरे शीलव्रत की विराधना हुई । मूंगा, बहरा, अँधा, कुष्ठी, सड़े हुए शरीरवाला लज्जावाला हो तो वो जब तक शील का खंडन न करे तब तक देव भी उसकी स्तुति करते है । काँटा मेरे पाँव में चुभ गया इस निमित्त से मुजसे जो गलती हुई है, उसका मुजे महालाभ होगा | [११८३-११८८] जो स्त्री मन से भी शील का खंडन करे वो पाताल के भीतर साँत पुश्तो की परम्परा-शाखा में अगर साँतो नारकी में जाते है । इस तरह की गलती मैंने क्यों की ? तो अब जब तक में मुज पर वज्र या धूल की वृष्टि न हो, मेरे दिल के सौ टुकड़े न हो जाए तो वो भी एक महा ताज्जुब माना जाएगा । दुसरा शायद मैं इसके लिए आलोचना करूँगी तो लोग ऐसा चिन्तवन करेंगे कि कुछ लोगों की पुत्री मन से इस तरह का अशुभ अध्यवसाय किया । उस वजह से मैं वैसा प्रयोग करके दुसरे ने ऐसा सोचा होगा उसे कितना प्रायश्चित् दे । ऐसे आलोचना करूँगी, जिससे मैंने ऐसा चिन्तवन किया है वैसे दुसरे कोई न जाने । भगवंत इस दोष का जो प्रायश्चित् देंगे वो घोर काफी निष्ठुर होगा तो भी उन्होंने कहा हुआ सुनकर उतना तप करूँगा । जब तक त्रिविध त्रिविध से शल्य रहित उस तरह का सुन्दर
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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