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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
के साथ मकड़े के जन्तुवाला आहार भरपेट खाया । दुसरी वजह यह भी है कि इस गच्छ में सेंकड़ो प्रमाण साधु-साध्वी होने के बावजूद, जितने सचित्त पानी से केवल आँखे धो शकते है उतने अल्प लेकिन सचित्त जल का गृहस्थ की वजह से कभी भी साधु को भोगवटा नहीं कर शकते । उसके बजाय तुने तो गौमुत्र ग्रहण करने के लिए जाते-जाते जिसके मुख नासिका में से गलते लीट लपेटे हए थे पर लगे थे । उस वजह से बणबणनेवाली मधुमक्खी उड़ रही थी, ऐसे श्रावक पुत्र के मुख को सचित जल से प्रक्षालन किया वैसे सचित्त जल का संघट्टा करने की विराधना की वजह से देव असुर की वंदन करने के लायक अलंघनीय ऐसी गच्छमर्यादा को भी तोड़ दिया । प्रवचन देवता यह तुम्हारा अघटित व्यवहार सह न शके या साधु-साध्वी ने प्राण के संशय में भी कुए, तालाब, वावड़ी, नदी आदि के जल को हाथ से छूना न कल्पे । वीतराग परमात्मा ने साधु-साध्वी के लिए सर्वथा अचित्त जल हो तो भी समग्र दोष रहित हो, ऊबाला हुआ तो, उसका ही परिभोग करना कल्पे । इसलिए देवता ने चिन्तवन किया कि इस दुराचारी को इस तरह शिक्षा करूँ कि जिससे उसकी तरह दुसरी किसी भी तरह का आचरण या प्रवृत्ति न करे । ऐसा मानकर कुछ कुछ चूर्ण का योग जब तुम भोजन करते थे तब उन देवताओ ने तुम्हारे भोजन में डाला । उन देवता के किए हुए प्रयोग हम जानने के लिए समर्थ नहीं हो शकते । इस वजह से तुम्हारा शरीर नष्ट हुआ है, लेकिन अचित्त जल पीने से नष्ट नहीं हुआ ।
उस वक्त रजा-आर्या ने सोचा कि उस प्रकार ही है । केवली के वचन में फर्क नहीं होगा । ऐसा सोचकर केवली ने बिनती की कि हे भगवंत ! यदि मैं यथोक्त प्रायश्चित् का सेवन करूँ तो मेरा यह शरीर अच्छा हो जाए तब केवली ने प्रत्युत्तर दिया कि यदि कोई प्रायश्चित् दे तो सुधारा हो शके । रजा आर्या ने कहा कि हे भगवंत ! आप ही मुझे प्रायश्चित् दो । दुसरे कौन तुम्हारे समान आत्मा है ? तब केवली ने कहा कि हे दुष्करकास्केि ? मैं तुम्हें प्रायश्चित् तो दे शकता हूँ लेकिन तुम्हारे लिए ऐसा कोई प्रायश्चित् ही नहीं है कि जिससे तुम्हारी शुद्धि हो शके । रजा ने पूछा कि हे भगवंत ! किस वजह से मेरी शुद्धि नहीं है ? केवली ने कहा कि तुने जिस साध्वी समुदाय के सामने ऐसा कहा कि अचित्त पानी का उपभोग करने से मेरा शरीर सड़ गया । इस दुष्ट पाप के बड़े समुदाय के एक पिंड़ समान तुम्हारे वचन को सुनकर यह सभी साध्वी के हृदय हिल गए । वो सब सोचने लगे कि अब हम भी अचित्त जल का त्याग कर दे लेकिन उस साध्वीओ ने तो अशुभ अध्यवसाय की आलोचना निंदा और गुरु साक्षी में गर्हणा कर ली । उन्हें तो मैंने प्रायश्चित दे दिया है ।
इस प्रकार अचित्त जल के त्याग से और वचन के दोष से काफी कष्ट दायक विरस भयानक बद्ध स्पृष्ट निकाचित्त बड़े पाप का ढ़ग तुने उपार्जन किया है और उस पाप समुदाय से तुम कोढ़, व्याधि, भगंदर, जलोदर, वायु, गुमड़, साँस फूलना, हरस, मसा, कंठमाल आदि कई व्याधि की वेदना से भरे शरीरवाली बनेगी । और फिर दरिद्र के दुःख, दुर्भाग्य, अपयश, झूठे आरोप, कलंक लगाना, संताप, उद्धेग, कलेशादिक से, हमेशा जलनेवाली ऐसी अनन्ता भव तक काफी लम्बे अरसे तक, जैसा दिन में वैसा लगातार को दुःख भुगतना पड़ेगा, इस वजह से हे गौतम ! यह वो रजा-आर्या अगीतार्थपन के दोष से केवल वचन से ही ऐसे महान दुःख दायक पाप कर्म का उपार्जन करनेवाली हुई ।