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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
होता । वैसे अज्ञानी को धर्म की आराधना होती है या विराधना होती है वैसी भी पहचान नहीं होती । इसलिए या तो खुद गीतार्थ-शास्त्र के जानकार हो, उसका विहार या वैसे गीतार्थ की निश्रा में, आज्ञा में रहकर विहार करने की उत्तम साधु के लिए शास्त्रकार ने अनुज्ञा दी है । इन दोनों के अलावा तीसरा विकल्प शास्त्र में नहीं है ।
[१०७०-१०७१] अच्छी तरह से संवेग पाया हो, आलस रहित हो, दृढ़ व्रतवाले हो, हमेशा अस्खलित चारित्रवाले हो, राग, द्वेष रहित हो, चार कषाय को उपशमाया हो, इन्द्रिय को जीतनेवाला हो, ऐसे गुणवाले जो गीतार्थ गुरु हो उनके साथ विहार करना । क्योंकि वो छद्मस्थ होने के बावजुद (श्रुत) केवली है ।
[१०७२-१०७६] हे गौतम ! जहाँ सूक्ष्म पृथ्वीकाय के एक जीव को कीलामणा होती है तो उसका सर्व केवली से अल्पारंभ कहते है । जहाँ छोटे पृथ्वीकाय के एक जीव का प्राण विलय हो उसे सभी केवली महारंभ कहते है । एक पृथ्वीकाय के जीव को थोड़ा सा भी मसला जाए तो उससे अशातवेदनीय कर्मबंध होता है कि जो पापशल्य काफी मुश्किल से छोड़ शके । उसी प्रकार अपकाय, तेऊकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय और मैथुन सेवन के चीकने पापकर्म उपार्जन करते है । इसलिए मैथुन संकल्प पृथ्वीकाय आदि जीव विराधना दुरन्त फल देते देखकर जावजीव त्रिविध त्रिविध से त्यजना ।
[१०७७-१०८२] इसलिए जो परमार्थ को नहीं जानते और हे गौतम ! जो अज्ञानी है, वो दुर्गति के पंथ को देनेवाले ऐसे पृथ्वीकाय आदि की विराधना गीतार्थ गुरु निश्रा में रहकर संयमसाधना करनी । गीतार्थ के वचन से हलाहल झहर का पान करना । किसी भी विकल्प किए बिना उनके वचन के मुताबिक तत्काल झहर का भी भक्षण कर लेना । परमार्थ से सोचा जाए तो वो विष नहीं है । वाकई उनका वचन अमृत रस के आस्वाद समान है। इस संसार में उनके वचन के अनुसार बिना सोचे अनुसरण करनेवाला, मरकर भी अमृत पाता है । अगीतार्थ के वचन से अमृत का भी पान मत करना । परमार्थ से अगीतार्थ का वचन अमृत नहीं है लेकिन वो झहर युक्त हलाहल कालकूट विष है । उसके वचन से अजरामर नहीं बन शकते । लेकिन मरकर दुर्गति में जाते है । मार्ग में सफर करनेवाले को चीर विघ्न करवाते है उस प्रकार मोक्षमार्ग की सफर करनेवाले के लिए अगीतार्थ और कुशील का समागम विघ्न करवानेवाला है, इसलिए उनके संघ का दुर से त्याग करना ।
[१०८३-१०८४] धगधगते अग्नि को देखकर उसमें प्रवेश निःशंक पन से करना और खुद का जल मरना अच्छा । लेकिन कभी भी कुसील के समागम के न जाना या उसका शरण मत अपनाना | लाख साल तक शूली में बांधकर सुख से रहना अच्छा है । लेकिन अगीतार्थ के साथ एक पल भी वास मत करना ।
[१०८५-१०८७] मंत्र, तंत्र रहित हो और भयानक दृष्टि विष साँप इँसता हो, उसका आश्रय भले ही करना लेकिन अगीतार्थ और कुशील अधर्म का सहवास मत करना । हलाहल झहर खा लेना, क्योंकि उसी वक्त एक बार मार डालेंगे लेकिन गलती से भी अगीतार्थ का संसर्ग मत करना, क्योंकि उससे लाख मरण उपार्जन करूँगा । घोर रूपवाले भयानक ऐसे शेर, वाघ या पिशाच नीगल जाए तो नष्ट होना लेकिन अगीतार्थ का संसर्ग मत करना ।
[१०८८-१०८९] साँत जन्मान्तर के शत्रु को सगा भाई मानना, लेकिन व्रत-नियम