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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद नीकलकर तिर्यंच गति में कुम्हार के यहां बैल के रुप में, पेदा हुआ । वहाँ से च्यवकर मनुष्य हुआ । फिर वध करनेवाले का अधिपति, और फिर उस पापकर्म के दोष से साँतवी मे पहुँचा। वहाँ से नीकलकर तीर्यंच गति में कुम्हार के वहाँ बैल के रूप में पेदा हुआ । उसे वहाँ चक्की, गाड़ी, हल, अरघट्ट आदि में जुड़कर रात-दिन धूसरी में गरदन घिसकर फोल्ले हो गए और भीतर सडा गया । खंभे में कृमि पेदा हुई । अब जब खांध घोसरी धारण करने के लिए समर्थ नहीं है ऐसा मानकर उसका स्वामी कुम्हार इसलिए पीठ पर बोझ वहन करवाने लगा | अब वक्त गुजरने से जिस तरह खाँध में सडा हो गया उस तरह पीठ भी घिरकर सड गई । उसमें भी कीड़े पेदा हो गए । पूरी पीठ भी सड़ गई और उसके ऊपर का चमड़ा नीकल गया और भीतर का माँस दिखने लगा । उसके बाद अब यह कुछ काम नहीं कर शकेगा, इसलिए निकम्मा है. ऐसा मानकर छोड दिया । हे गौतम ! उस सावधाचार्य का जीव सलसल कीडो से खाए जानेवाले बैल को छोड दिया । उसके बाद काफी सड़े हुए चर्मवाले, कई कौए कूत्ते कृमि के कुल से भीतर और बाहर से खाए जानेवाला काटनेवाला उनतीस साल तक आयु पालन करके मरकर कईं व्याधि वेदना से व्याप्त शरीरवाला मानवगति में अति धनिक किसी बड़े घर के आदमी के वहाँ जन्म लिया । वहाँ भी वमन करने के खाश, कटु, तीखे, कषे हुए, स्वादिष्ट, त्रिफला, गुगल आदि औषधि पीनी पड़ती, हमेशा उसके सफाई करनी पड़े असाध्य, उपशम न हो, घोर भयानक दुःख से जैसे अग्नि में पकता हो वैसे कठिन दुःख भुगतते भुगतते उनको मिला हुआ मानव भव असफल हुआ । उस प्रकार हे गौतम ! सावद्याचार्य को जीव चौदह राजलोक में जन्म-मरणादिक के हमेशा दुःख सहकर काफी लम्बे अनन्तकाल के बाद अवरविदेह में मानव के रूप में पेदा हुआ । वहाँ शायद ही योग लोक की अनुवृत्ति से तीर्थंकर भगवंत को वंदन करने के लिए गया प्रतिबोध पाया और दीक्षा अंगीकार करके यहाँ श्री २३ वे पार्श्वनाथ तीर्थंकर के काल में सिद्धि पाई । हे गौतम ! सावधाचार्य ने इस प्रकार दुःख पाया । हे भगवंत ! इस तरह का दुस्सह घोर भयानक दुःख आ पड़ा । उन्हे भुगतना पड़ा । इतने लम्बे अरसे तक यह सभी दुःख किस निमित्त से भुगतने पड़े । हे गौतम ! उस वक्त उसने जैसे ऐसा कहा कि, “उत्सर्ग और अपवाद सहित आगम बताया है । एकान्त में प्ररूपणा नहीं की जाती लेकिन अनेकान्त से प्ररूपणा करते है, लेकिन अपकाय का परिभोग, तेऊकाय का समारम्भ, मैथुनसेवन यह तीनों दुसरे किसी स्थान में एकान्त में या निश्चय से और दृढ़ता से या सर्वथा सर्व तरह से आत्महित के अर्थि के लिए निषेध किया है । यहाँ सूत्र का उल्लंघन किया जाए तो सम्यग् मार्ग का विनाश, उन्मार्ग का प्रकर्ष होता है, आज्ञा भंग के दोष से अनन्तसंसारी होते है ।। _हे भगवंत ! क्या उस सावधाचार्य ने मैथुन सेवन किया था ? हे गौतम ! सेवन किय और सेवन नहीं किया यानि सेवन किया यह भी नहीं । और सेवन न किया ऐसा भी नहीं । हे भगवंत ! ऐसे दो तरीके से क्यों कहते हो? हे गौतम ! जो उस आर्या ने उस वक्त मस्तक से पाँव का स्पर्श किया, स्पर्श हुआ उस वक्त उसने पाँव खींचकर सिकुड़ नहीं लिया । इस वजह से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि, मैथुन सेवन किया और सेवन नहीं किया । हे भगवंत ! केवल इतनी वजह में ऐसे घोर दुःख से मुक्त कर शके वैसा बद्ध स्पृष्ट निकाचित कर्मबंध होता है क्या ? हे गौतम ! ऐसा ही है । उसमें कोई फर्क नहीं है । हे भगवंत !
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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