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महानिशीथ-५/-1८३४
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हे गौतम ! अनन्ता कालं वर्तते अब दश अच्छेरा होंगे । उतने में असंख्याता अभव्यो, असंख्याता मिथ्यादृष्टि, असंख्याता आशातना करनेवाले, द्रव्यलिंग में रहकर स्वच्छंदता से अपनी मति कल्पना के अनुसार से सत्कार करवाएगे, सत्कारकी अभिलाषा रखेंगे यह धार्मिक है-ऐसा करके कल्याण न समजनेवाले जिनेश्वर का प्रवचन अपनाएगे, उसे अपनाकर जिह्वा स्स की लोलुपता से, विषय की लोलुपता से दुःख से करके दमन कर शके वैसी इन्द्रिय के दोष से हमेशा यथार्थ मार्ग को नष्ट करते है और उन्मार्ग का फैलावा करते है । उस समय वो सर्व आतीर्थंकर परमात्मा का अलंघनीय प्रवचन है । उसकी भी आशातना करने तक पाप करते है ।
[८३५] हे भगवंत ! अनन्ता काल कौन-से दश अच्छेरा होंगे । हे गौतम ! उस समय यह दश अच्छेश होंगे । वो इस प्रकार-१. तीर्थंकर भगवंत को उपसर्ग, २. गर्भ पलटाना जाना, ३. स्त्री तीर्थंकर, ४. तीर्थंकर की देशना में अभव्य, दीक्षा न लेनेवाले के समुदाय की पर्षदा इकट्ठी होना, ५. तीर्थंकर के समवसरण में चंद्र और सूरज का अपना विमान सहित आगमन, ६. कृष्ण वासुदेव द्रौपदी को वापस लाने के लिए अपरकंका में गए तब शंख ध्वनि के शब्द से कुतूहल से एक दुसरे वासुदेव को आपस में मिलना हुआ, ७. इस भरत क्षेत्र में हरिवंशकुल की उत्पत्ति । ८. चमरोत्पात, ९. एक समय में १०८ बड़ी कायावाले की सिद्धि, १०. असंयत की पूजा सत्कार करेंगे ।
[८३६] हे भगवंत ! यदि किसी तरह से कभी प्रमाद दोष से प्रवचन-जैन शासन की आशातना करे क्या वो आचार्य पद पा शकते है ? हे गौतम ! जो किसी भी तरह से शायद प्रमाद दोष से बार-बार क्रोध, मान, माया या लोभ से, राग से, द्वेष से, भय से, हँसी से, मोह से या अज्ञात दोष से प्रवचन के किसी भी दुसरे स्थान की आशातना करे, उल्लंघन करे, अनाचार, असमाचारी की प्ररूपणा करे, उसकी अनुमोदना करे या प्रवचन की आशातना करे वो बोधि भी न पाए, फिर आचार्य पद की बात ही कहाँ ? हे भगवंत ! क्या अभवी या मिथ्यावृष्टि आचार्य पद पाए ? हे गौतम ! पा शकते है, इस विषय में अंगारपुरुषक आदि का दृष्टांत है । हे भगवंत ! क्या मिथ्यादृष्टि को वैसे पद पर स्थापित कर शकते है ? हे गौतम ! स्थापन कर शकते है ।
हे भगवंत ! यह यकीनन मिथ्यादृष्टि है । ऐसा कौन-सी निशानी से पहचान शकते है ? हे, गौतम ! सर्व संग से विमुक्त होने के लिए जिस के सर्व सामायिक उचरी हो और सचित्त-प्राण सहित चीजे और पानी का परिभोग करे, अणगार धर्म को अंगीकार करके बारबार मदिरा या तेऊकाय का सेवन करे, करवाए या सेवन करनेवाले को अच्छा मानकर उसकी अनुमोदना करे या ब्रह्मचर्य की बताई हुई नवगुप्तिओ की किसी साधु या साध्वी उसमें से एक का भी खंडन करे, विराधे, मन, वचन, काया से खंडन करवाए या विराधना करवाए या दुसरा कोई खंडन या विराधना करता हो तो उसे अच्छा मानकर, उसकी अनुमोदना करे वो मिथ्यादृष्टि है । अकेला मिथ्यादृष्टि ही नहीं लेकिन आभिग्राहिक मिथ्यादृष्टि समजे ।।
[८३७] हे भगवंत ! जो कोई आचार्य जो गच्छनायक बार-बार किसी तरह से शायद उस तरह की कारण पाकर इस निर्ग्रन्थ प्रवचन को अन्यथा रूप से-विपरीत रूप से प्ररूपे तो वैसे कार्य से उसे कैसा फल मिले ? हे गौतम ! जो सावधाचार्य ने पाया ऐसा अशुभ फल