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________________ महानिशीथ-५/-/७४७ है । तीन में से एक की भी न्युनता हो तो मोक्ष नहीं होता । [ ७४८] उस ज्ञानादि त्रिपुटी के अपने अंग स्वरूप हो तो क्षमा आदि दश तरह के यति धर्म है । उसमें से एक-एक पद जिसमें आचरण किया जाए वो गच्छ । [ ७४९] जिसमें पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और तरह-तरह के त्रस जीव को मरण के अवसर पर भी जो मन से पीड़ित नहीं करते वो गच्छ । ३३ [७५० ] जिसमें सचित्त जल की एक बुँद भी गर्मी में चाहे कैसा भी गला सूख रहा हो, तीव्र तृषा लगी हो, मरने का समय हो तो भी मुनि कच्चे पानी की बुँद को भी न चाहे । [७५१] जिस गच्छ में शूलरोग, दस्त, उल्टी या दुसरे किसी तरह के विचित्र मरणांत बिमारी पेदा होती हो तो भी अग्नि प्रकट करने के लिए किसी को प्रेरणा नहीं देते वो गच्छ । [७५२] जिस गच्छ में ज्ञान धारण करनेवाले ऐसे आचार्यदिक आर्य को तेरह हाथ दूर से त्याग करते हैं । श्रुतदेवता की तरह हर एक स्त्री का मन से त्याग करे वो गच्छ । [७५३-७५४] रतिक्रिड़ा, हाँस्यक्रीड़ा, कंदर्प, नाथवाद जहाँ नहीं किया जाता, दौड़ना, गड्ढे का उल्लंघन करना, मम्माचच्चावाले अपशब्द जिसमें नहीं बोले जाते, जिसमें कारण पेदा हो तो भी वस्त्र का आंतरा रखकर स्त्री के हाथ का स्पर्श भी दृष्टिविष सर्प या प्रदिप्त अग्नि और झहर की तरह वर्जन किया जाता हो वो गच्छ । [७५५] लिंग यानि वेश धारण करनेवाला या अरिहंत खुद भी स्त्री के हाथ को छू ले तो हे गौतम! उसे यकीनन मूलगुण से बाहर जानना । [७५६] उत्तम कुल में पेदा होनेवाला और गुण सम्पन्न, लब्धियुक्त हो लेकिन जिन्हें मूलगुण में स्खलना होती हो उनको जिसमें से नीकाला जाए वो गच्छ । [७५७] जिसमें हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, काँस आदि धातु, गद्दी शयन, आसन आदि गृहस्थ के इस्तेमाल करने के लायक चीजों का उपभोग नहीं होता वो गच्छ । [७५८] जिसमें किसी कारण से समर्पण किया हो ऐसा पराया सुवर्ण आया हो तो पलभर या आँख के अर्धनिमेष समय जितने पल भी जिसको छूआ नहीं जातां वो गच्छ । [७५९] चपल चित्तवाली आर्या के दुर्धर ब्रह्मचर्य व्रतपालन के लिए साँत हजार परिहार स्थानक जहाँ है वो गच्छ । [७६०] जिसमें उत्तर- प्रत्युत्तर से आर्या साधु के साथ अति क्रोध पाकर प्रलाप करती हो तो हे गौतम ! वैसे गच्छ का क्या काम ? [७६१] हे गौतम! जहाँ कईं तरह के विकल्प के कल्लोल और चंचल मनवाली आर्या के वचन के अनुसार व्यवहार किया जाए उसे गच्छ क्यों कहते है ? [७६२-७६३] जहाँ एक अंगवाला केवल अकेला साधु-साध्वी के साथ बाहर एक सौ हाथ ऊपर आगे चले, हे गौतम! उस गच्छ में कौन-सी मर्यादा ? हे गौतम! जहाँ धर्मोपदेश के सिवा साध्वी के साथ आलाप संलाप बार-बार वार्तालाप आदि व्यवहार वर्तता हो उस गच्छ को कैसा गिनना ? [ ७६४-७६६] हे भगवंत ! साधुओ को अनियत विहार या नियत विहार नहीं होते, तो फिर कारण से नित्यवास, स्थिरवास जो सेवन करे उसकी क्या हकीकत समजे ? हे गौतम! ममत्वभाव रहित होकर निरंहकारपन से ज्ञान, दर्शन, चारित्र में उद्यम करनेवाला हो, समग्र 11 3
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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