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महानिशीथ-५/-/७२०
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अपभ्राजना हो वैसा व्यवहार नहीं करते । निरंतर स्वाध्याय और ध्यान में लीन मनवाले, घोर तप और चरण से शोषे हुए शरीरवाले, जिसमें से क्रोध, मान, माया चले गए है और राग, द्वेष जिन्होंने दूर से सर्वथा त्याग किया है विनयोपचार करने में कुशल, सोलह तरह के वचन शुद्धिपूर्वक बोलने में कुशल, निरवद्य वचन बोलनेवाला ज्यादा न बोलने के स्वभाववाला, बारबार न बोलनेवाले, गुरु ने सकारण या बिना कारण कठोर, कठिन, कर्कश, निष्ठुर, अनिष्ट शब्द कहे हो तब भी 'तहत्ति' करनेवाला 'इच्छं' उत्तर देनेवाला इस तरह के गुणवाले जो गच्छ में शिष्य हो उसे गच्छ कहते है ।
[७२१-७२३] भ्रमणस्थान-यात्रादि में ममत्वभाव का सर्वथा त्याग करके, अपने शरीर के लिए भी निःस्पृह भाववाली, संयम के निर्वाह तक केवल आहार ग्रहण करनेवाले, वो आहार भी ४२ दोष रहित हो, शरीर के रूपक से इन्द्रिय के रस के पोषण के लिए नहीं, भोजन करतेकरते भी अनुकूल आहार खुद को मिलने के बदले अभिमान न करनेवाला हो, केवल संयमयोग वहन करने के लिए, इर्यासमिति के पालन के लिए, वैयावच्च के लिए, आहार करनेवाला होता है । क्षुधा वेदना न सह शके, इर्या समिति पालन के लिए, पडिलेहणादिक संयम के लिए, आहार ग्रहण करनेवाला होता है ।
[ ७२४ -७२५] अपूर्व ज्ञानग्रहण करने के लिए, धारणा करने में अति उद्यम करनेवाले शिष्य जिसमें हो, सूत्र, अर्थ और उभय को जो जानते है और वो हमेशा उद्यम करते है, ज्ञानाचार के आँठ, दर्शनाचार के आँठ, चारित्राचार के आँठ (तपाचार के बारह) और वीर्याचार के छत्तीस आचार, उसमें बल और वीर्य छिपाए बिना अग्लानि से काफी एकाग्र मन, वचन, काया के योग से उद्यम करनेवाला हो । इस तरह के शिष्य जिसमें हो वो गच्छ है ।
[ ७२६] गुरु महाराज कठोर कड़ी, निष्ठुर वाणी से सेंकड़ो बार ठपका दे तो भी शिष्य जिस गच्छ में प्रत्युत्तर न दे तो उस गच्छ कहते है ।
[७२७] तप प्रभाव से अचिन्त्य पेदा हुई लब्धि और अतिशयवाली ऋद्धि पाइ हो तो भी जिस गच्छ में गुरु की अवहेलना शिष्य न करे उसे गच्छ कहते है ।
[७२८] एक बार कठिन पंखड़ीओ के साथ वाद करके विजय प्राप्त किया हो, यश समूह उपार्जन किया हो ऐसे शिष्य भी जिस गच्छ में गुरु की हेलना - अवहेलना नहीं करता उसे गच्छ कहते है ।
[७२९] जिसमें अस्खलित, एक दुजे में अक्षर न मिल जाए उस तरह आड़े- टेढ़े अक्षर जीसमें बोले न जाए वैसे अक्षरवाले, पद और अक्षर से विशुद्ध, विनय और उपधान पूर्वक पाए हुए बारह अंग के सूत्र और श्रुतज्ञान जिसमें पाए जाते हो वो गच्छ है ।
[७३०] गुरु के चरण की भक्ति समूह से और उसकी प्रसन्नता से जिन्होंने आलावा को प्राप्त किए है ऐसे सुशिष्य एकाग्रमन से जिसमें अध्ययन करता हो उसे गच्छ कहते है । [७३१] ग्लान, नवदीक्षित, बालक आदि से युक्त गच्छ की दश तरह की विधपूर्वक जिसमें गुरु की आज्ञा से वैयावच्च हो रही हो उसे गच्छ कहते है ।
[ ७३२] जिसमें दश तरह की सामाचारी खंड़ीत नहीं होती, जिसमें रहे भव्य सत्त्व के जीव का समुदाय सिद्धि पाता है, बोध पाता है वो गच्छ है ।
[७३३] १. इच्छाकार, २. मिच्छाकार, ३. तथाकार, ४. आवश्यकी, ५. नैषेधिकी,