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________________ पिंडनियुक्ति-६४३ यह देखकर लोग साधु की निंदा करे कि, 'इन लोगों को धिक्कार है, कैसे अपवित्र है कि ऐसे दारू पीनेवाले से भी भिक्षा ग्रहण करते है । अपवाद - यदि वो श्रावक हो, परवश न हो यानि भान में हो और आसपास में लोग न हो तो दिया हुआ लेना कल्पे । उन्मत्त - महासंग्राम आदि में जय पाने से अभिमानी होकर या भून आदि का वमल में फँसा हो उससे उन्मत्त, उनसे भी भिक्षा लेना न कल्पे | उन्मत्त में ऊपर के मत्त में कहने के अनुसार वमनदोष रहित के दोष लगते है । अपवाद - वो पवित्र हो, भद्रक हो और शान्त हो तो लेना कल्पे । वेपमान - शरीर काँप रहा हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । शरीर काँपने से उनके हाथ से भिक्षा देते शरीर गिर जाए या पात्र में डालते शरीर बाहर गिरे या भाजन आदि हाथ से नीचे गिर जाए, तो भाजन तूट जाए, छह काय जीव की विराधना आदि होने से भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - शरीर काँप रहा हो, लेकिन उसके हाथ न काँपते हो तो कल्पे । ज्वरित - बुखार आ रहा हो तो उससे लेना न कल्पे । ऊपर के अनुसार दोष लगे अलावा उसका बुखार शायद साधु में संक्रमे, लोगो में उड्डार हो कि, 'यह कैसे आहार लंपट है बुखाखाले से भिक्षा लेते है । इसलिए बुखारवाले से भिक्षा लेना न कल्पे | अपवाद - बुखार उतर गया हो - भिक्षा देते समय बुखार न हो तो कल्पे । अंध - अंधो से भिक्षा लेना न कल्पे | शासन का उड्डाह होता है कि, 'यह अंधा दे शके ऐसा नहीं है फिर भी यह पेटभरे साधु उनसे भिक्षा ग्रहण करते है ।' अंधा देखता नहीं होने से जमी पर रहे छह जीवनिकाय विराधना करे, पत्थर आदि बीच में आ जाए तो नीचे गिर पडे तो उसे लगे. भाज उठाया हो और गिर पडे तो जीव की विराधना हो । देते समय बाहर गिर जाए आदि दोष होने से अंधे से भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - श्रावक या श्रध्धालु अंधे से उसका पुत्र आदि हाथ पकड़कर दिलाए तो भिक्षा लेना कल्पे । प्रगलित - गलता को आदि चमड़ी की बिमारी जिसे हुई हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे न भिक्षा देने से उसे कष्ट हो, गिर जाए, दस्त-पिशाब अच्छी प्रकार से साफ कर शके तो अपवित्र रहे । उनसे भिक्षा लेने में लोगों को जुगुप्सा हो, छह जीवनीकाय की विराधना आदि दोष लगे, इसलिए उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - ऊपर बताए दोष को जिस अवसर में सँभावना न हो और आसपास में दूसरे लोग न हो तो भिक्षा लेना कल्पे । आरूढ - पाँव में पादुका - जूते आदि पहना हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । हस्तान्दु - दोनों हाथ लकड़े की हेड़ में डाले हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । निगड़ - पाँव में बेड़ियाँ हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । छिन्नहस्तवाद - हाथ या पाँव कटे हुए हो ऐसे ढूँठे या लंगड़े से भिक्षा लेना न कल्पे। त्रिराशिक - नपुंसक से भिक्षा लेना न कल्पे । नपुंसक से भिक्षा लेने में स्व - पर और उभय का दोष रहा है । नपुंसक से बार-बार भिक्षा लेने से काफी पहचान होने से साधु को देखकर उसे वेदोदय हो और कुचेष्टा करे यानि दोनों को मैथुनकर्म का दोष लगे । बारबार न जाए लेकिन किसी दिन जाए तो मैथुन दोष का अवसर न आए, लेकिन लोगों में जुगुप्सा होती है कि, 'यह साधु नपुंसक से भी भिक्षा ग्रहण करते है, इसलिए साधु भी नपुंसक होंगे ।' इत्यादि दोष लगे । __अपवाद - नपुंसक अनासेवी हो, कृत्रिम प्रकार से नपुंसक हुआ हो, मंत्र, तंत्र से नपुंसक हुआ हो, श्राप से नपुंसक हुआ हो तो उससे भिक्षा लेना कल्पे ।
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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