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________________ पिंडनियुक्ति-३५६ २०५ खुशबुदार अच्छा घी आदि लाकर साधु को देना । लौकिक अन्य द्रव्य यानि कोद्रव आदि देकर साधु निमित्त से अच्छे चावल आदि लाकर साधु को दे । वसंतपुर नगर में निलय नाम के शेठ रहते थे । उनकी सुदर्शना नाम की बीवी थी। क्षेमकर और देवदत्त नाम के दो पुत्र और लक्ष्मी नाम की बेटी थी । उसी नगर में दुसरे तिलक नाम के शेठ थे । उन्हें सुंदरी नाम की बीवी, धनदत्त नाम का बेटा और बंधुमती नाम की बेटी थी । लक्ष्मी का तिलक शेठ के बेटे धनदत्त के साथ ब्याह किया था । बंधुमती निलय शेठ के पुत्र देवदत्त के साथ ब्याह किया था । एक दिन उस नगर में श्री समितसूरि नाम के आचार्य पधारने से उनका उपदेश सुनकर क्षेमंकर ने दीक्षा ली । कर्मसंयोग से धनदत्त दरिद्र हो गया, जब कि देवदत्त के पास काफी द्रव्य था । श्री क्षेमंकरमुनि विचरते विचरते, उस नगर में आए । उनको सारे खबर मिले इसलिए सोचा कि, 'यदि मैं अपने भाई के वहाँ जाऊँगा तो मेरी बहन को लगेगा कि, 'गरीब होने से भाई मुनि मेरे घर न आए और भाई के घर गए। इसलिए उसके मन को दुःख होगा ।' ऐसा सोचकर अनुकंपा से भाई के वहाँ न जाते हुए, बहन के वहाँ गए । भिक्षा का समय होने पर बहन सोचने लगी कि, “एक तो भाई, दुसरे साधु और तीसरे महेमान है । जब कि मेरे घर तो कोद्रा पकाए है, वो भाई मुनि को कैसे दे शकती हूँ ? शाला डांगर के चावल मेरे यहाँ नहीं है । इसलिए मेरी भाभी के घर कोद्रा देकर चावल ले आऊँ और मुनि को दूँ । इस प्रकार सोचकर कोद्रा बँधु पुरुष भाभी के घर गई और कोद्रा देकर चावल लेकर आई । वो चावल भाई मुनि को वहोराए । देवदत्त खाने के लिए बैठा तब बंधुमती ने कहा कि, 'आज तो कोद्रा खाना है,' देवदत्त को पता नहीं कि 'मेरी बहन लक्ष्मी कोद्रा देकर चावल ले गई है । इसलिए देवदत्त समजा कि, 'इसने कृपणता से आज कोद्रा पकाए है ।' इसलिए देवदत्त गुस्से में आकर बंधुमती को मारने लगा और बोलने लगा कि, 'आज चावल क्यों नहीं पकाए ।' बंधुमती बोली कि, मुझे क्यों मारते हो ? तुम्हारी बहन कोद्रा रखकर चावल लेकर गई है । इस ओर धनदत्त खाने के लिए बैठा तब साधु को वहोराते हुए चावल बचे थे वो धनदत्त की थाली में परोसे । चावल देखते ही धनदत्त ने पूछा कि, 'आज चावल कहाँ से ? लक्ष्मी ने कहा कि, 'आज मेरे भाई मुनि आए है, उन्हें कोद्रा कैसे दे शकती हैं ? इसलिए मेरी भाभी को कोद्रा देकर चावल लोई हँ । साधु को वहोराते हुए बचे थे वो तुम्हें परोसे । यह सुनते ही धनदत्त को गुस्सा आया कि, 'इस पापिणी ने मेरी लघुता की ।' और लक्ष्मी को मारने लगा । लोगों के मुँह से दोनों घर का वृत्तांत क्षेमंकर मुनि को पता चला । इसलिए सबको बुलाकर प्रतिबोध करते हुए कहा कि, चीज की अदल-बदल करके लाया गया आहार साधु को न कल्पे । मैंने तो अनजाने में ग्रहण किया था लेकिन अदल-बदल कर लेने में कलह आदि दोष होने से श्री तीर्थंकर भगवंत ने ऐसा आहार लेने का निषेध किया है ।' लोकोत्तर परावर्तित - साधु आपस में वस्त्रादि का परिवर्तन करे उसे तद्रव्य परावर्तन कहते है । उससे किसी को ऐसा लगे कि, 'मेरा वस्त्र प्रमाणसर और अच्छा था, जब कि यह तो बड़ा और जीर्ण है, मोटा है, कर्कश है, भारी है, फटा हुआ है, मैला है, ठंड रोक न शके ऐसा है, ऐसा समजकर मुझे दे गया और मेरा अच्छा वस्त्र लेकर गया ।' इसलिए आपस में कलह हो । एक को लम्बा हो और दुसरे को छोटा हो तो बाहर अदल-बदल न करनेवाले आचार्य या गुरु के पास दोनों ने बात करके अपने अपने वस्त्र रख देने चाहिए । इसलिए गुरु
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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