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पिंडनियुक्ति-११७-२४०
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करे, अचित्त करे तो वो चीज साधु को कल्पे । और फिर अचित्त चीज को अग्नि आदि के आरम्भ से साधु को उद्देशकर पकाया जाए तो वो चीज साधु को न कल्पे, लेकिन वो अचित्त चीज पकाने की शुरूआत साधु को उद्देशकर की हो और पकाई; लेकिन पकाकर तैयार करने के बाद चूल्हा पर से गृहस्थ ने अपने लिए उतारी हो तो वो चीज साधु को कल्पे । लेकिन अचित्त चीज गृहस्थ ने अपने लिए पकाने की शुरूआत की हो और पकाई हो लेकिन साधु आने के या समाचार जानकर साधु को वहोराने के निमित्त से वो तैयार की गई चीज चूल्हे पर से नीचे उतारे तो वो चीज साधु को न कल्पे ।।
किसके लिए बनाया आधाकर्मी कहलाता है ? प्रवचन और लिंग - वेश से जो साधु का साधर्मिक हो, उनके लिए बनाई हई चीज साधु के लिए आधाकर्मी दोषवाली है । इसलिए वो चीज साधु को न कल्पे । लेकिन प्रत्येकबुद्ध, निह्नव, तीर्थंकर आदि के लिए बनाई गई चीज साधु को कल्पे । साधर्मिक के प्रकर बताते है | १. नाम, २. स्थापना, ३. द्रव्य, ४. क्षेत्र, ५. काल, ६. प्रवचन, ७. लिंग, ८. दर्शन, ९. ज्ञान, १०. चारित्र, ११. अभिग्रह और १२. भावना । यह बारह प्रकार से साधर्मिक हो ।
इस बारह प्रकार के साधर्मिक में कल्प्य और अकल्प्यपन बताते है । नाम साधर्मिक किसी पुरुष अपने पिता जिन्दा हो तब या मर जाने के बाद उनके अनुराग से उस नामवाले को आहार देने की उम्मीद करे, यानि वो तय करे कि 'जो किसी देवदत्त नाम के गृहस्थ या त्यागी हो वो सबको मैं भोजन बनाके दूँ ।' जब ऐसा संकल्प हो तो देवदत्त नाम के साधु को वो भोजन न कल्पे. लेकिन उस नाम के अलावा दूसरे नामवाले साध को कल्पे ।
स्थापना साधर्मिक - किसी के रिश्तेदार ने दीक्षा ली हो और उनके राग से वो रिश्तेदार साधु की मूरत या तसवीर बनाकर उनके सामने रखने के लिए भोजन तैयार करवाए और फिर तय करे कि, “ऐसे वेशवाले को मैं यह भोजन हूँ ।' तो साधु को न कल्पे ।
द्रव्यसाधर्मिक-साधु का कालधर्म हुआ हो और उनके निमित्त से आहार बनाकर साधु को देने का संकल्प किया हो तो साधु को वो आहार लेना न कल्पे ।
क्षेत्रसाधर्मिक-सौराष्ट्र, कच्छ, गुजरात, मावाड़, महाराष्ट्र, बंगाल आदि प्रदेश को क्षेत्र कहते है । और फिर गाँव, नगर, गली, महोल्ला आदि भी क्षेत्र कहलाते है । 'सौराष्ट्र देश में उत्पन्न होनेवाले साधु को मैं आहार दूं।' ऐसा तय किया हो तो सौराष्ट्र देश में उत्पन्न होनेवाले साधु को न कल्पे, दुसरे साधु को कल्पे ।
काल साधर्मिक - महिना, दिन, प्रहर आदि काल कहलाते है । 'कुछ तिथि, कुछ दिन या कुछ प्रहर में उत्पन्न होनेवाले साधु को वो आहार न कल्पे, उसके सिवा के न कल्पे ।
प्रवचन, लिंग, दर्शन, ज्ञान, चारित्र, अभिग्रह और भावना । इस साँत प्रकार के साधर्मिक में द्विसंयोगी २१ भांगा होते है । वो इस प्रकार १. प्रवचन और लिंग । २. प्रवचन और दर्शन । ३. प्रवचन और ज्ञान । ४. प्रवचन और चारित्र । ५. प्रवचन और अभिग्रह । ६. प्रवचन और भावना । ७. लिंग और दर्शन । ८. लिंग और ज्ञान । ९. लिंग और चारित्र । १०. लिंग और अभिग्रह । ११. लिंग और भावना । १२. दर्शन और ज्ञान । १३. दर्शन और चारित्र । १४. दर्शन और अभिग्रह । १५. दर्शन और भावना । १६. ज्ञान और चारित्र । १७. ज्ञान और अभिग्रह । १९. ज्ञान और भावना | १९. चारित्र और अभिग्रह । २०. चारित्र और भावना । २१. अभिग्रह और भावना ।