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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[६६२] अब देशान्तर की और प्रयाण करनेवाले ऐसे उन दोनों ने रास्ते में पाँच साधु और छठ्ठा एक श्रमणोपासक उन्हें देखे । तब नागिल ने सुमति को कहा हे अरे सुमति ! भद्रमुख, देखो, इन साधुओ का साथ कैसा है तो हम भी इस साधु के समुदाय के साथ जाए। उसने कहा कि भले, वैसा करे । केवल एक मुकाम पर जाने के लिए प्रयाण करते थे तब नागिल ने सुमति को कहा कि हे भद्रमुख ! हरिवंश के तिलकभूत मरकत रत्न के समान श्याम कान्तिवाले अच्छी तरह नाम ग्रहण करने के योग्य बाईसवे तीर्थंकर श्री अरिष्ठनेमि भगवंत के चरण कमल में सुख से बैठा था, तब इस प्रकार सुनकर अवधारण किया था कि इस तरह के अणगार रूप को धारण करनेवाले कुशील माने जाते है । और जो कुशील होते है उन्हें दृष्टि से भी देखना न कल्पे, इसलिए उनके साथ गमन संसर्ग थोड़ा सा भी करना न कल्पे, इसलिए उन्हें जाने दो, हम किसी छोटे साथे के साथ जाएगे । क्योंकि तीर्थंकर के वचन का उल्लंघन नहीं करना चाहिए । देव और असुरवाले इस जगत को भी तीर्थंकर की वाणी उल्लंघन करने के लायक नहीं है । दुसरी बात यह कि - जब तक उनके साथ चले तब तक उनके दर्शन की बात तो जाने दो लेकिन आलाप-संलाप आदि भी नियमा करना पड़े; तो क्या हम तीर्थंकर की वाणी का उल्लंघन करके गमन करे ? उस प्रकार सोचकर सुमति का हाथ पकड़कर नागिल साधु के साथ में से नीकल गया ।
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[६६३-६६९] नेत्र से देखकर, शुद्ध और निर्जीव भूमि पर बैठा । उसके बाद सुमति ने कहा कि ज्ञान देनेवाले गुरु, माँ-बाप, बुजुर्ग और बहन या जहाँ प्रत्युत्तर न दे शकते हो वहाँ हे देव ? मैं क्या कहूँ ? उनकी आज्ञा के अनुसार तहत्ति ऐसा करके अपनानी ही हो । यह मेरे लिए इष्ट है या अनिष्ट यह सोचने का अवकाश ही नहीं है । लेकिन आज तो इस विषय में आर्य को इसका उत्तर देना ही पड़ेगा और वो भी कठिन, कर्कश, अनिष्ट, दुष्ट, निष्ठुर शब्द से ही । या तो बड़े भाई के आगे यह मेरी ज़बान कैसे उठती है कि जिसकी गोद में मैं बिना अशुचि से खरड़ित अंगवाला कईं बार खेला है । या तो वो खुद ऐसा अनचाहा बोलने से क्यों नहीं शरमाते ? कि यह कुशील है । और आँख से उन साधुओ को देखना भी नहीं चाहिए । जितने में खुद ने सोचा हुआ अभी तक नहीं बोलता । उतने में इंगित आकार जानने में कुशल बड़े भाई नागिल उसका हृदयगत भाव पहचान गए कि यह सुमति फिझूल में झूठे कषायवाला है । तो कौन-सा प्रत्युत्तर देना ऐसे सोचने लगा । [६७०-६७६] बिना कारण बिना अवसर पर क्रोधायमान हुए भले अभी वैसे ही रहे, अभी शायद उसे समज न दी जाए तो भी वो बहुमान्य नहीं करेंगे । तो क्या अभी उसे समजाए कि हाल कालक्षेप करे ? काल पसार होगा तो उसे कषाय शान्त होंगे और फिर मेरी बताई सारी बातों का स्वीकार होगा । या तो हाल का यह अवसर ऐसा है कि उसके संशय को दूर कर शकूँगा । जब तक विशेष समज न दी जाए तब तक इस भद्रिक भाई की समज में कुछ न आएगा । ऐसा सोचकर नागिल छोटे भाई सुमति को कहने लगा कि हे बन्धु ! मैं तुजे दोष नहीं दे रहा मैं, इसमें अपना ही दोष मानता हूँ कि हित बुद्धि से सगे भाई को भी कहा जाए तो वो कोपायमान होता है । आँठ कर्म की जाल में फँसे जीव को ही यहाँ दोष है कि चार दोष में से बाहर नीकालनेवाले हितोपदेश उन्हें असर नहीं करता, सज्जड़ राग, द्वेष, कदाग्रह, अज्ञान, मिथ्यात्व के दोष से खाए हुए मनवाले आत्मा को हितोपदेश समान