________________
पिंडनियुक्ति-४८
१८३
बनकर अलग हो गए हो ऐसे । आहार आदि मुक्केलक अग्निकाय है और उसका उपयोग किया जाता है ।
[४९-५७] वायुकाय पिंड़ - सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से, निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त - रत्नाप्रभादि पृथ्वी के नीचे वलयाकार में रहा धनवात, तनुवात, काफी शर्दी में जो पवन लगे वो, काफी दुर्दिन में वाता हुआ वायु आदि । व्यवहार से सचित्त - पूरब आदि दिशा का पवन, काफी शर्दी और काफी दुर्दिन रहित लगता पवन । मिश्र - दत्ति आदि में भरा वायु कुछ समय के बाद मिश्र । अचित्त - पाँच प्रकार से । आक्रांत - दलदल आदि दबाने से नीकलता वायु । धंत-मसक आदि का वायु । पीलित - धमण आदि का वायु । शरीर, अनुगत, श्वासोच्छ्वास, शरीर में रहा वायु । मिश्र - कुछ समय तक मिश्र फिर सचित्त । अचित्त वायुकाय का उपयोग - अचित्त वायु भरी मसक तैरने के काम में ली जाती है, एवं स्लान आदि के उपयोग में ली जाती है । अचित्त वायु भरी मसक क्षेत्र से सौ हाथ तक तैरे तब तक अचित्त, दुसरे सौ हाथ तक यानि एक सौ एक वे हाथ से दो सौ हाथ तक मिश्र, दो सौ हाथ के बाद वायु सचित्त हो जाता है । स्निग्ध (वर्षाऋतु) ऋक्ष (शर्दी-गर्मी) काल में जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट अचित्त आदि वायु की पहचान के लिए कोठा । | काल अचित्त । मिश्र । सचित्त
उत्कृष्ट स्निग्धकाल | एक प्रहर तक | दुसरे प्रहर तक | दुसरे प्रहर की शुरूआत से मध्यम स्निग्धकाल | दो प्रहर तक तीसरे प्रहर तक | चौथे की शुरूआत से जघन्य स्निग्धकाल | दो प्रहर तक चार प्रहर तक | पाँचवे की शुरूआत से जघन्य रूक्षकाल
दुसरे दिन
| तीसरे दिन मध्यम रूक्षकाल
तीसरे दिन | चौथे दिन उत्कृष्ट रूक्षकाल | तीन दिन । चौथे दिन | पाँचवे दिन ।
वनस्पतिकायपिंड़ - सचित्त, मिश्र । सचित्त दो प्रकार से - निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त - अनन्तकाय वनस्पति । व्यवहार से सचित्त - प्रत्येक वनस्पति । मिश्र - मुझाये हुए फल, पत्र, पुष्प आदि, साफ न किया हुआ आँटा, खंडीत की गई डाँगर आदि । अचित्त-शस्त्र आदि से परिणत वनस्पति । अचित्तवनस्पति का उपयोग संथारो, कपड़े, औषध आदि में उपयोग होता है ।
[६३-६७] बेइन्द्रियपिंड़, तेइन्द्रियपिंड़, चऊरिन्द्रियपिंड़, पंचेन्द्रियपिंड़ यह सभी एक साथ अपने अपने समूह रूप हो तब पिंड़ कहलाते है । वो भी सचित्त, मिश्र और अचित्त तीन प्रकार से होते है । अचित्त का प्रयोजन । दो इन्द्रिय - चंदनक - शंख - छीप आदि स्थापना, औषध आदि कार्य में । तेइन्द्रिय - उधेही की मिट्टी आदि । चऊरिन्द्रिय - शरीर, आरोग्य के लिए, उल्टी आदि कार्य में मक्खी की अघार आदि । पंचेन्द्रिय पिंड - चार प्रकार से नारकी, तिर्यंच, मानव और देव । नारकी का व्यवहार किसी भी प्रकार नहीं हो शकता । तिर्यंच पंचेन्द्रिय का उपयोग - चमड़ा, हड्डियाँ, बाल, दाँत, नाखून, रोम, शींग, विष्टा, मूत्र आदि कारण के अवसर पर उपयोग किया जाता है । एवं वस्त्र, दूध, दही, घी आदि का