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________________ १६० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद ज्ञान की वृद्धि हो, वो ज्ञानपिंड़ । जिस पिंड से दर्शन की वृद्धि हो वो दर्शनपिंड़ । चारित्र की वृद्धि करे वो चारित्र पिंड़ ज्ञान-दर्शन और चारित्र की वृद्धि हो, इसके लिए शुद्ध आहार आदि ग्रहण करे । लेप किए गए पात्र में, आहारादि ग्रहण किए जाते है, वो एषणा युक्त होने चाहिए। [६४९-६७९] एषणा चार प्रकार से है 1 नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव उसमें द्रव्य एषणा तीन प्रकार से गवेषणा, ग्रहण एषणा, ग्रास एषणा । अन्वेषणा के आँठ हिस्से । प्रमाण, काल, आवश्यक, संघाट्टक, उपकरण, मात्रक काऊस्समग योग । प्रमाण - भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर दो वार जाना, बिना समय पर ठल्ला की शंका हुई हो तो उस समय पानी ले, भिक्षा के समय गोचरी और पानी लेना । काल - जिस गाँव में भिक्षा का जो समय हो उस समय जाए । समय के पहले जाए तो यदि प्रान्त द्वेषवाले गहस्थ हो तो नीचे के अनसार दोष बने । यदि वो साधु के दर्शन अमंगल मानता हो तो साध को देखते ही पराभव - अपमान करे, निंदा करे, मारे । यह साधु पेट भरे में ही मानते है, सुबर-सुबह नीकल पड़े आदि । भिक्षा का समय होने के बाद गोचरी के लिए जाए तो यदि गृहस्थ सरल हो तो घर में कहे कि, अब से इस समय पर रसोई तैयार हो ऐसा करना इससे उद्गम आधाकर्म आदि दोष होते है या साधु के लिए आहार आदि रहने दे, गृहस्थ प्रान्त हो या बुराइ करे कि, क्या यह भिक्षा का समय है ? नहीं सुबह में नहीं दोपहर में ? समय बिना भिक्षा के लिए जाने से काफी घुमना पड़े इससे शरीर को क्लेश हो । भिक्षा के समय से पहले जाए तो । यदि भद्रक हो तो रसोइ जल्द करे, प्रान्त हो तो हिलना आदि करे । आवश्यक - ठल्ला मात्रादि की शंका दूर करके भिक्षा के लिए जाना । उपाश्रय के बाहर नीकलते ही, 'आवस्सहि' कहना । संघाट्टक दो साधु का साथ में भिक्षा के लिए जाना, अकेले जाने में कई दोष की संभावना है । स्त्री का उपद्रव हो या कुत्ते, प्रत्यनीक आदि से उपघात हो । साधु अकेला भिक्षा के लिए जाए उसके कारण - मैं लब्धिमान हुँ इसलिए अकेला जाए, भिक्षा के लिए जाए वहाँ धर्मकथा करने लगे इसलिए उनके साथ दुसरे साधु न जाए। मायावी होने से अकेला जाए । अच्छा अच्छा बाहर खा ले और सामान्य गोचरी वसति में लाए इसलिए साथ में दुसरे साधु को न ले जाए । आलसी होने से अकेला गोचरी लाकर खाए। लुब्ध होने से दुसरा साधु साथ में हो तो विगई आदि न माँग शके इसलिए, निर्धमि होने से अनेषणीय ग्रहण करे, इसलिए अकेला जाए । अकाल आदि कारण से अलग-अलग जाए तो भिक्षा मिल शके इसलिए अकेले जाए । आत्माधिष्ठित यानि खुद को जो मिले उसका ही उपयोग करे इसलिए अकेला जाए । लड़ाकु हो तो उसके साथ कोइ न जाए । उपकरण उत्सर्ग से सभी उपकरण साथ में ले जाकर भिक्षा के लिए जाए । सभी उपकरण साथ में लेकर भिक्षा के लिए घुमने में समर्थ न हो तो पात्रा, पड़ला रजोहरण, दो वस्त्र (एक सूती-दुसरा ऊनी) और इंडा लेकर गोचरी के लिए जाए | मात्रक - पात्रा के साथ दुसरा मात्रक लेकर भिक्षा के लिए जाए । जिसमें सहसा भिक्षा लाभ आचार्य आदि की सेवा आदि फायदे भाष्यकारने बताए है । काऊस्सम्ग - उपयोग करावणियं का आँठ श्वासोच्छ्वास का काउस्सम्म करके आदेश माँगे, 'संदिसह' आचार्य कहे 'लाभ' साधु कहे, कहंति (कहलेसु) आचार्य कहे, 'तहति' (जहा गहिअपुव्वसाहहिं) योग फिर कहे कि आवस्सियाए जस्स जोगो जो-जो संयम के लिए जुरुरी होगा वो - वो मैं ग्रहण करूँगा ।
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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