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________________ १४६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद साधु असहिष्णु हो तो गोचरी के लिए वहाँ रखकर जाए और साथ में मार्ग के परिचित साधु को रखे । जिससे जिस गाँव में जाना है वहाँ सुख से आ शके । जिस गाँव में ठहरना है उस गाँव में किसी कारण से बदलाव हो गया हो यानि उस गाँव में रहा जाए ऐसा न हो तो, पीछे रहे साधु इकट्ठे हो शके उसके लिए दो साधु को वहाँ रोक ले । यदि दो साधु न हो तो एक साधु को रोके या किसी लुहार आदि को कहे कि, हम उस गाँव में जा रहे है । पीछे हमारे साधु आते है, उनको कहना कि तुम्हारे साधु इस रास्ते पर गए है । वो गाँव यदि शून्य हो तो जिस रास्ते से जाना हो उस रास्ते पर लम्बी रेखा खींचनी चाहिए । जिससे पीछे आनेवाले साधु को रास्ते का पता चले । गाँव में प्रवेश करे उसमें यदि वसति का व्याघात हुआ हो, तो दुसरी वसति की जांच करके उतरे । रास्ते में भिक्षा के लिए रोके हुए साधु भिक्षा लेकर आए तब पता चले, कि 'गच्छ तो आगे के गाँव में गए है ।' तो यदि वो गाँव दो जोजन से ज्यादा हो, तो एक साधु को गच्छ के पास भेजे, वो साधु गच्छ में रहे साधु में भूखे हो वो साधु भिक्षा लेकर ठहरे है वहाँ वापस आ जाए । फिर गोचरी करके उस गाँव में जाए । गाँव में रहे साधु ने यदि गोचरी कर ली हो तो कहलाए कि, 'हमने खाया है', तुम वहाँ गोचरी करके आना ।। [२९१-३१८] वसति ग्रहण - गाँव में प्रवेश करके उपाश्रय के पास आए, फिर वृषभ साधु वसति में प्रवेश करके काजो ले, परदा बाँधे तब तक दुसरे साधु उपाश्रय के बाहर खड़े रहे । काजा लिए जाने के बाद सभी साधु वसति में प्रवेश करे । यदि उस समय गोचरी का हो तो एक संघाटक काजा ले और दुसरे गोचरी के लिए जाए । पूर्वे तय की हुइ वसति का किसी कारण से व्याघात हुआ हो, तो दुसरी वसति की जांच करके, सभी साधु उस वसति में जाए । प्रश्नः गाँव के बाहर गोचरी करके फिर वसति में प्रवेश करना । क्योंकि भूखे और प्यासे होने से ईर्यापथिकी ढूँढ़ न शके, इसलिए संयम विराधना होती है । पाँव में काँटा आदि लगा हो तो उपधि के बोझ से देख न शके, इससे आत्म विराधना हो, इसलिए बाहर विकाले आहार करके प्रवेश करना उचित नहीं है ?...ना । बाहर खाने में आत्मविराधना, संयम विराधना के दोष है । क्योंकि यदि बाहर गोचरी करे तो वहाँ गृहस्थ हो । उन्हें दूर जाने के लिए कहे और यदि वो दूर जाए उसमें संयम विराधना हो । उसमें शायद वो गृहस्थ वहाँ से हटे नहीं और उल्टा सामने बोले कि, तुम इस जगह के मालिक नहीं हो । शायद आपस में कलह होता है । साधु मंडलीबद्ध गौचरी करते है, इसलिए गृहस्थ ताज्जुब से आए, इसलिए संक्षोभ हो । आहार गले में न उतरे । कलह हो । इसलिए गृहस्थ कोपायमान हो और फिर से वसति न दे । दुसरे गाँव में जाकर खाए तो उपधि और भिक्षा के बोझ से और क्षुधा के कारण से, ईर्यापथिकी देख न शके । इससे पाँव में काँटा लगे तो आत्म विराधना । आहारादि नीचे गिर जाए तो उसको छह काय की विराधना । यानि संयम विराधना । विकाले प्रवेश करे तो वसति न देखी हुई हो वो दोष लगे । गाँव में प्रवेश करते ही कुत्ते आदि काट ले, चोर हो तो मारे या उपधि उठा ले जाए । खेवाल शायद पकड़ ले या मारे । बैल हो तो शायद शींग मारे । रास्ता भटक जाए । वेश्या आदि निंद्य के घर हो उसका पता न चले । वसति में काँटा आदि पड़े हो तो लग जाए । सर्प आदि के बील हो तो शायद साँप आदि ड्रेस ले । इससे आत्म विराधना हो । न देखी हुइ प्रमार्जन न की हुइ वसति में संथारो करने से चींटी आदि जीवजन्तु की विराधना हो, इससे संयम विराधना हो । न देखी हुई वसति में
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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