________________
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
।
[५८-६२] रास्ते में छ काय की जयणा के लिए कहते है-पृथ्वीकाय तीन भेद से है । सचित्त, अचित्त और मिश्र, इन तीनों के भी काला - नीला आदि वर्ण भेद से पाँच-पाँच पेटा पद, उसमें अचित्त पृथ्वी में विचरण करना । अचित्त पृथ्वी में भी गीली और सूखी दोनों हो तो गीले में जाने से विराधना होती है । श्रम लगना और गंदकी चिपकती है । सूखे में भी मिट्टीवाला और मिट्टी रहित मार्ग होता है । मिट्टीवाले मार्ग में दोष लगे उसके लिए मिट्टी रहित मार्ग में जाना चाहिए । गीला मार्ग भी तीन प्रकार से है । 'मधुसिक्थ' पाँव का तलवा तक दलदल 'पिंक' पाँव में मोजे पहने हो उतना दलदल और 'चिक्खिल्ल' गरक जाए उतना कीचड़ और फिर सूखे रास्ते में भी "प्रत्यपाय" नाम का दोष है जंगली जानवर कूत्ते, चोर, काँटा, म्लेच्छ आदि प्रत्यपाय दोष है । सुष्क रास्ते के दो भेद आक्रांत और अनाक्रांत । आक्रांत मार्ग के दो भेद । प्रत्यपाय और अप्रत्यापाय । प्रत्यापाय दोषवाले मार्ग में न जाते हुए अप्रत्यपाय मार्ग में जाए, मार्ग न मिले तो मिट्टीवाले मार्ग में, वो न मिले तो गीली पृथ्वीवाले मार्ग में, वो न हो तो मिश्र, वो न हो तो सचित्त ऐसे गमन करना चाहिए । [६३-६५] शर्दी-गर्मी में रजोहरण से पाँव प्रमार्जन करे । बरसात में पादलेखनीका से प्रमार्जन करे । यह पाद लेखनिका उदुम्बर वड़ या इमली के पेड़ की बनी बारह ऊँगली लम्बी और एक अंगुल मोटी होती है । दोनों ओर धारवाली कोमल होती है । और फिर हर एक साधु की अलग-अलग होती है । एक ओर की किनार से पाँव में लगी हुई सचित्त पृथ्वी को दूर करे दुसरी ओर से अचित्त पृथ्वी को दूर करे |
[६५-७०] अप्काय दो प्रकार से है । भूमि का पानी और आकाश का पानी । आकाश के पानी के दो भेद धुमस और बारिस । यह दोनों देखकर बाहर न नीकले । नीकलने के बाद जैसे कि नजदीकी घर या पेड़ के नीचे खड़ा रहे । यदि वहाँ खड़े रहने में कोइ भय हो तो 'वर्षाकल्प' बारिस के रक्षा का साधन ओढ़कर जाए । ज्यादा बारिस हो तो सूखे पेड़ पर चड़ जाए । यदि रास्ते में नदी आ जाए तो दुसरे रास्ते से या पुल पर से जाए । भूमि पर पानी हो तब प्रतिपृच्छा करके जाना, यह सब एकाकी नहीं है । परम्परा प्रतिष्ठ है । यदि नदी का पुल या अन्य कच्चा रास्ता हो, मिट्टी गिर रही हो, अन्य किसी भय हो तो उस रास्ते से नहीं जाना, प्रतिपक्षी रास्ते से जाना । यानि निर्भय या आलम्बन वाले रास्ते से या उस प्रकार के अन्य रास्ते से जाना । चलमान, अनाक्रान्त, भयवाला रास्ता छोड़कर अचल, आक्रान्त और निर्भय रास्ते से जाना, गीली मिट्टी का लेप हुआ हो तो नजदीक से पाँव को प्रमार्जन करना, पानी तीन, भेद से बताया है । पत्थर पर से बहनेवाला, दलदल पर से बहनेवाला, मिट्टी पर से बहनेवाला । इन तीनों के दो भेद है आक्रांत और अनाक्रांत । आक्रांत के दो भेद सप्रत्यपाय और अप्रत्यपाय क्रमशः पाषाण पर से बहता पानी फिर दलदल पर से... उस प्रकार से रास्ता पसंद करना ।
१३४
[७१-७६] आँधी जंघा जितने पानी को संघट्ट कहते है, नाभि प्रमाण पानी को लेप कहते है और नाभि के ऊपर पानी हो तो लेपोपरी कहते है | संघट्ट नदी उतरने से एक पाँव पानी में और दुसरा पाँव ऊँचा रखे । उसमें से पानी बह जाए फिर वो पाँव पानी में रखे और पहला पाँव ऊपर रखे । उस प्रकार से सामने के किनारे पर पहुँचे । फिर ( इरियावही ) कायोत्सर्ग करे । यदि निर्भय जल हो तो गृहस्थ स्त्री आदि उतर रहे हो तो पीछे-पीछे जाए । लयवाला पानी हो तो चौलपट्टे को ऊपर लेकर गाँठ बाँधे । लोगों के बीच उतरे क्योंकि शायद