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________________ आचार-२/१/१/७/३७५ तुषोदक, यवोदक, उबले हुए चावलों का ओसामण, कांजी का बर्तन धोया हुआ जल, प्रासुक उष्ण जल अथवा इसी प्रकार का अन्य- धोया हुआ पानी इत्यादि जल पहले देखकर ही साधु गृहस्थ से कहे- “आयुष्मन् गृहस्थ क्या मुझे इन जलों में से किसी जल को दोगे ?" वह गृहस्थ यदि कहे कि “आयुष्मन् श्रमण ! जल पात्र में रखे हुए पानी को अपने पात्र से आप स्वयं उलीच कर या उलटकर ले लीजिए ।" गृहस्थ के इस प्रकार कहने पर साधु उस पानी को स्वयं ले ले अथवा गृहस्थ स्वयं देता हो तो उसे प्रासुक और एषणीय जान कर प्राप्त होने पर ग्रहण कर ले । [३७६] गृहस्थ के यहाँ पानी के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि इस प्रकार का पानी जाने कि गृहस्थ ने प्रासुक जल को व्यवधान रहित सचित्त पृथ्वी पर यावत् मकड़ी के जालों से युक्त पदार्थ पर रखा है, अथवा सचित्त पदार्थ से युक्त बर्तन से निकालकर रखा है । असंयत गृहस्थ भिक्षु को देने के उद्देश्य से सचित्त जल टपकते हुए अथवा जरा-से गीले हाथों से, सचित्त पृथ्वी आदि से युक्त बर्तन से, या प्रासुक जल के साथ सचित्त उदक मिलाकर लाकर दे तो उस प्रकार के पानक को अप्रासुक और अनेषणीय मानकर साधु उसे मिलने पर भी ग्रहण न करे । __यह (आहार-पानी की गवेषणा का विवेक) उस भिक्षु या भिक्षुणी की (ज्ञान-दर्शनचारित्रादि आचार सम्बन्धी) समग्रता है । | अध्ययन-१ उद्देशक-८ | । [३७७] गृहस्थ के घर में पानी के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि इस प्रकार का पानक जाने, जैसे कि आम्रफल का पानी, अंबाडक, कपित्थ, बिजौरे, द्राक्षा, दाडिम, खजूर, नारियल, करीर, बेर, आँवले, अथवा इमली का पानी, इसी प्रकार का अन्य पानी है, जो कि गुठली सहित है, छाल आदि सहित है, या बीज सहित है और कोई असंयत गृहस्थ साधु के निमित्त बाँस की छलनी से, वस्त्र से, एक बार या बार-बार मसल कर, छानता है और लाकर देने लगता है, तो साधु-साध्वी इस प्रकार के पानक को अप्रासुक और अनेषणीय मान कर मिलने पर भी न ले । [३७८] वह भिक्षु या भिक्षुणी आहार प्राप्ति के लिए जाते पथिक-गृहों में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में या पख्रिाजकों के मठों में अन्न की, पेय पदार्थ की, तथा कस्तूरी इत्र आदि सुगन्धित पदार्थों की सौरभ सूंघ कर उस सुगन्ध के आस्वादन की कामना से उसमें मूर्छित, गृद्ध, ग्रस्त एवं आसक्त होकर उस गन्ध की सुवास न ले । [३७९] गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जानें कि वहाँ कमलकन्द, पालाशकन्द, सरसों की बाल तथा अन्य इसी प्रकार का कच्चा कन्द है, जो शस्त्र-परिणत नहीं हआ है, ऐसे कन्द आदि को अप्रासुक जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे। यदि यह जाने के वहाँ पिप्पली, पिप्पली का चूर्ण, मिर्च या मिर्च का चूर्ण, अदरक या अदरक का चूर्ण तथा इसी प्रकार का अन्य कोई पदार्थ या चूर्ण, जो कच्चा और अशस्त्रपरिणत है, उसे अप्रासुक जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे । गृहस्थ के यहाँ आहार के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि वहाँ ये जाने कि आम्र
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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