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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद नववधू के प्रवेश आदि के उपलक्ष्य में भोज हो रहा है, उन भोजों से भिक्षाचर भोजन लाते दिखायी दे रहे हैं, मार्ग में बहुत-से प्राणी यावत् मकड़ी का जाला भी नहीं है तथा वहाँ बहुतसेभिक्षु ब्राह्मणादि भी नहीं आए हैं, न आएँगे और न आ रहे हैं, लोगों की भीड़ भी बहुत कम है । वहाँ प्राज्ञ निर्गमन प्रवेश कर सकता है तथा वहाँ प्राज्ञ साधु के वाचना-पृच्छना आदि धर्मानुयोग चिन्तन में कोई बाधा उपस्थित नहीं होगी, ऐसा जान लेने पर संखडि की प्रतिज्ञा से जाने का विचार कर सकता है । ७४ [३५७] भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करना चाहते हों; यह जान जाएँ कि अभी दुधारू गायों को दुहा जा रहा है तथा आहार अभी तैयार किया जा रहा है, उसमें से किसी दूसरे को दिया नहीं गया है । ऐसा जानकर आहार प्राप्ति की दृष्टि से न तो उपाश्रय से निकले और न ही उस गृहस्थ के घर में प्रवेश करे । किन्तु वह भिक्षु उसे जानकर एकान्त में चला जाए और जहाँ कोई आता-जाता न हो और न देखता हो, वहाँ ठहर जाए । जब वह यह जान ले कि दुधारू गायें दुही जा चुकी हैं और आहार भी अब तैयार हो गया है तथा उसमें से दूसरों को दे दिया गया है, तब वह संयमी साधु आहारप्राप्ति की दृष्टि से वहाँ से निकले या उस गृहस्थ के घर में प्रवेश करे । [३५८] जंघादि बल क्षीण होने से एक ही क्षेत्र में स्थिरवास करने वाले अथवा मासकल्प विहार करने वाले कोई भिक्षु, अतिथि रूप से अपने पास आए हुए, ग्रामानुग्राम विचरण करने वाले साधुओं से कहते हैं—पूज्यवरो ! यह गाँव बहुत छोटा है, बहुत बड़ा नहीं है, उसमें भी कुछ घर सूतक आदि के कारण रूके हुए हैं । इसलिए आप भिक्षाचरी के लिए बाहर (दूसरे) गाँवों में पधारें । - मान लो, इस गाँव में स्थिरवासी मुनियों में से किसी मुनि के पूर्व-परिचित अथवा पश्चात्परिचित रहते हैं, जैसे कि गृहपति, गृहपत्नियाँ, गृहपति के पुत्र एवं पुत्रियाँ, पुत्रवधुएँ, धायमाताएँ, दास-दासी, नौकर-नौकरानियाँ, वह साधु यह सोचे की मेरे पूर्व-परिचित और पश्चात् - परिचित घर हैं, वैसे घरों में अतिथि साधुओं द्वारा भिक्षाचरी करने से पहले ही मैं भिक्षार्थ प्रवेश करूँगा और इन कुलों से अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर लूँगा, जैसे कि - "शाली के ओदन आदि, स्वादिष्ट आहार, दूध, दही, नवनीत, धृत, गुड़, तेल, मधु, मद्य३ या मांस अथवा जलेबी, गुड़राब, मालपुए, शिखरिणी आदि । उस आहार को मैं पहले ही खा-पीकर पात्रों को धो-पोंछकर साफ कर लूँगा । इसके पश्चात् आगन्तुक भिक्षुओं के साथ आहार -प्राप्ति के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करूँगा और वहाँ से निकलूंगा ।" इस प्रकार का व्यवहार करने वाला साधु माया-कपट का स्पर्श करता है । साधु को ऐसा नहीं करना चाहिए । उस (स्थिरवासी) साधु को भिक्षा के समय उन भिक्षुओं के साथ ही उसी गाँव में विभिन्न उच्च-नीच और मध्यम कुलों से सामुदानिक भिक्षा से प्राप्त एषणीय, वेष से उपलब्ध निर्दोष आहार को लेकर उन अतिथि साधुओं के साथ ही आहार करना चाहिऐ । यही संयमी साधु-साध्वी के ज्ञानादि आचार की समग्रता है । अध्ययन- १ उद्देशक - ५ [३५९] वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में भिक्षा के निमित्त प्रवेश करने पर यह
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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