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सूत्रकृत-२/२/-/६६३
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इस प्रकार का महान् पाप-कर्म करने के कारण संसार में वह अपने आपको महापापी के नाम से विख्यात कर लेता है ।
(८) कोई पापी जीव शिकारी का धंधा अपना कर मृग या अन्य किसी त्रस प्राणी को मार-पीट कर, यावत् अपनी जीविका उपार्जन करता है । इस प्रकार स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है ।
(९) कोई पापात्मा बहेलिया बन कर पक्षियों को जाल में फंसाकर पकड़ने का धंधा स्वीकार करके पक्षी या अन्य किसी त्रस प्राणी को मारकर यावत् अपनी आजीविका कमाता है । वह स्वयं को महापापी के नाम से प्रख्यात कर लेता है ।
(१०) कोई पापकर्मजीवी मछुआ बनकर मछलियों को जाल में फंसा कर पकड़ने का धंधा अपना कर मछली या अन्य त्रस जलजन्तुओं का हनन करके यावत् अपनी आजीविका चलाता है । अतः स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है ।
(११) कोई पापात्मा गोवंशघातक का धंधा अपना कर गाय, बैल या अन्य किसी भी त्रस प्राणी का हनन, छेदन करके यावत् अपनी जीविका कमाता है । अपनेको महापापी के रूप में प्रसिद्ध कर लेता है ।
(१२) कोई व्यक्ति गोपालन का धंधा स्वीकार करके उन्हीं गायों या उनके बछड़ों को टोले से पृथक् निकाल-निकाल कर बार-बार उन्हें मारता-पीटता तथा भूखे रखता है यावत् अपनी रोजी-रोटी कमाता है । स्वयं महापापियों की सूची में प्रसिद्धि पा लेता है ।
(१३) कोई अत्यन्त नीचकर्मकर्ता व्यक्ति कुत्तों को पकड़ कर पालने का धंधा अपना कर उनमें से किसी कुत्ते को या अन्य किसी त्रस प्राणी को मार कर यावत् अपनी आजीविका कमाता है । स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है ।
(१४) कोई पापात्मा शिकारी कुत्तों को रख कर श्वपाक वृत्ति अपना कर ग्राम आदि के अन्तिम सिरे पर रहता है और पास से गुजरने वाले मनुष्य या प्राणी पर शिकारी कुत्ते छोड़ कर उन्हें कटवाता है फड़वाता है, यहां तक कि जान से मरवाता है । वह इस प्रकार का भयंकर पापकर्म करने के कारण महापापी के रूप में प्रसिद्ध हो जाता है ।
[६६४] (१) कोई व्यक्ति सभा में खड़ा होकर प्रतिज्ञा करता है-'मैं इस प्राणी को मारूंगा' । तत्पश्चात् वह तीतर, बतख, लावक, कबूतर, कपिंजल या अन्य किसी त्रसजीव को मारता है, छेदन-भेदन करता है, यहां तक कि उसे प्राणरहित कर डालता है । अपने इस महान् पापकर्म के कारण वह स्वयं को महापापी के नाम से प्रख्यात कर देता है ।
(२) कोई पुरुष किसी कारण से अथवा सड़े गले, या थोड़ा-सा हलकी किस्म का अन्न आदि दे देने से अथवा किसी दूसरे पदार्थ से अभीष्ट लाभ न होने से विरुद्ध हो कर उस गृहपति के या गृहपति के पुत्रों के खलिहान में रखे शाली, व्रीहि जो, गेहूँ आदि धान्यों को स्वयं आग लगाकर जला देता अथवा दूसरे से आग लगवा कर जला देता है, उन के धान्य को जलानेवाले अच्छा समझता है । इस प्रकार के महापापकर्म के कारण जगत् में वह अपने आपको महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर देता है ।
(३) कोई पुरुष अपमानादि प्रतिकूल शब्दादि किसी कारण से, अथवा सड़ेगले या तुच्छ या अल्प अन्नादि के देने से या किसी दूसरे पदार्थ से अभीष्ट लाभ. न होने से उस गृहस्थ