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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [१४] जो ऐसा कहते हैं, उनके अनुसार यह लोक कैसे सिद्ध होगा । वे प्रमत्त और हिंसा से आबद्ध लोग अन्धकार से सघन अन्धकार की ओर जाते हैं । १५२ [१५] कुछ दार्शनिक यहाँ पाँच महाभूत कहते हैं और कुछ दार्शनिक आत्मा को छट्ठा महाभूत । उनके अनुसार आत्मा तथा लोक शाश्वत हैं । [१६] उन दोनों (आत्मा तथा लोक) का विनाश नहीं होता तथा असत् उत्पन्न नहीं होता । सभी पदार्थ सर्वथा नियति भाव को प्राप्त हैं । [१७] कुछेक मूढ़ और क्षणयोगी दार्शनिक कहते हैं कि स्कन्ध पाँच हैं । वे इससे अन्य अथवा अनन्य एवं सहेतुक या अहेतुक आत्मा को नहीं मानते । [१८] ज्ञायकों (धातुवादी बोद्धों) ने कहा है कि पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु से शरीर का निर्माण होता है । [१९] [उनके अनुसार] चाहे गृहस्थ हो या आरण्यक अथवा प्रव्रजित, जो भी इस दर्शन में आ जाते हैं, वे सभी दुःखों से मुक्त हो जाते हैं । [२०] सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद् नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे दुःख के प्रवाह का किनारा नहीं पा सकते । [२१] सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद् नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे संसार के पार नहीं जा सकते । [२२] सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद् नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे गर्भ के पार नहीं जा सकते । [२३] सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद् नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे जन्म के पार नहीं जा सकते । [२४] सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद् नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे दुःख के पार नहीं जा सकते । [२५] सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद् नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे मृत्यु के पार नहीं जा सकते । [२६] वे मृत्यु, व्याधि और बुढ़ापे से आकुल संसार रूपी चक्र में पुनः पुनः नाना प्रकार के दुःखों का अनुभव करते हैं । [२७] वे ऊंच और नीच गतियों में भटकते हुए अनन्तबार गर्भ में आएँगे ऐसा जिनेश्वर ज्ञातपुत्र महावीर ने कहा है । ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन- १ उद्देशक - २ [२८] कुछ कहते हैं कि जीव पृथक-पृथक उत्पन्न होते हैं, सुख दुःख का अनुभव करते हैं और अपने स्थान से लुप्त होते हैं, मरते हैं । - [२९] वह दुःख न तो स्वयं कृत होता है और न ही अन्यकृत । वह सुख या दुःख सिद्धि सम्बद्ध हो, असिद्धि / संसारसम्बद्ध हो, नियतिकृत होता है । [३०] जीव तो स्वयंकृत का अनुभव करते हैं और न ही अन्यकृत । वह तो सांगतिक / नियतिकृत होता है । ऐसा कुछ ( नियतिवादी) कहते 1
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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