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________________ आचार-२/३/१५/-/५२० १३९ मालिश की, तत्पश्चात् सुगन्धित काषाय द्रव्यों से उनके शरीर पर उबटन किया फिर शुद्ध स्वच्छ जल से भगवान् को स्नान कराया । बाद उनके शरीर पर एक लाख के मूल्य वाले तीन पट को लपेट कर साधे हुए सरस गोशीर्ष रक्त चन्दन का लेपन किया । फिर भगवान् को, नाक से निकलने वाली जरा-सी श्वास-वायु से उड़ने वाला, श्रेष्ठ नगर के व्यावसायिक पत्तन में बना हआ, कुशल मनुष्यों द्वारा प्रशंसित, अश्व के मुँह की लार के समान सफेद और मनोहर चतुर शिल्पाचार्यों द्वारा सोने के तार से विभूषित और हंस के समान श्वेत वस्त्रयुगल पहनाया । तदनन्तर उन्हें हार, अर्द्धहार, वक्षस्थल का सुन्दर आभूषण, एकावली, लटकती हुई मालाएँ, कटिसूत्र, मुकुट और रत्नों की मालाएँ पहनाईं । ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम और संघातिमपुष्पमालाओं से कल्पवृक्ष की तरह सुसज्जित किया । उसके बाद इन्द्र ने दुबारा पुनः वैक्रियसमुद्घात किया और उससे तत्काल चन्द्रप्रभा नाम की एक विराट् सहस्त्रवाहिनी शिबिका का निर्माण किया । वह शिबिका ईहामृग, वृषभ, अश्व, नर, मगर, पक्षिगण, बन्दर, हाथी, रुरु, सरभ, चमरी गाय, शार्दूलसिंह आदि जीवों तथा वनलताओं से चित्रित थी । उस पर अनेक विद्याधरों के जोड़े यंत्रयोग से अंकित थे | वह शिबिका सहस्त्र किरणों से सुशोभित सूर्य-ज्योति के समान देदीप्यमान थी, उसका चमचमाता हुआ रूप भलीभाँति वर्णनीय था, सहस्त्र रूपों में भी उसका आकलन नहीं किया जा सकता था, उसका तेज नेत्रों को चकाचौंध कर देने वाला था । में मोती और मुक्ताजाल पिरोये हुए थे । सोने के बने हुए श्रेष्ठ कन्दुकाकार आभूषण ये युक्त लटकती हुई मोतियों की माला उस पर शोभायमान हो रही थी । हार, अर्द्धहार आदि आभूषणों से सुशोभित थी, दर्शनीय थी, उस पर पद्मलता, अशोकलता, कुन्दलता आदि तथा अन्य अनेक वनमालाएँ चित्रित थीं। शुभ, मनोहर, कमनीय रूप वाली पंचरंगी अनेक मणियों, घण्टा एवं पताकाओं से उसका अग्रशिखर परिमण्डित था । वह अपने आप में शुभ, सुन्दर और अभिरूप, प्रासादीय, दर्शनीय और अति सुन्दर थी। [५२१] जरा-मरण से विमुक्त जिनवर महावीर के लिए शिबिका लाई गई, जो जल और स्थल पर उत्पन्न होने वाले दिव्यपुष्पों और देव निर्मित पुष्पमालाओं से युक्त थी । [५२२] उस शिबिका के मध्य में दिव्य तथा जिनवर के लिए श्रेष्ठ रत्नों की रूपराशि से चर्चित तथा पादपीठ से युक्त महामूल्यवान् सिंहासन बनाया गया था । [५२३] उस समय भगवान् महावीर श्रेष्ठ आभूषण धारण किये हुए थे, यथास्थान दिव्य माला और मुकुट पहने हुए थे, उन्हें क्षौम वस्त्र पहनाए हुए थे, जिसका मूल्य एक लक्ष स्वर्णमुद्रा था । इन सबसे भगवान् का शरीर देदीप्यमान हो रहा था। [५२४] उस समय प्रशस्त अध्यवसाय से, पष्ठ भक्त प्रत्याख्यान की तपश्चर्या से युक्त शुभ लेश्याओं से विशुद्ध भगवान् उत्तम शिबिका में विराजमान हुए । [५२५] जब भगवान शिबिका में स्थापित सिंहासन पर विराजमान हो गए, तब शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र उसके दोनों ओर खड़े होकर मणि-रत्नादि से चित्र-विचित्र हत्थे-डंडे वाले चामर भगवान् पर ढुलाने लगे । [५२६] पहले उन मनुष्यों ने उल्लासवश वह शिबिका उठाई, जिनके रोमकूप हर्ष से विकसित हो रहे थे । तत्पश्चात् सुर, असुर, गरुड़ और नागेन्द्र आदि देव उसे उठाकर ले चले ।
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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