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________________ १३४ ही वचन और काया से कराए । यदि कोई गृहस्थ, मुनि के शरीर में हुए गंड, अर्श, पुलक अथवा भगंदर को प्रासुक शीतल और उष्ण जल से थोड़ा या बहुत बार धोए तो साधु उसे मन से भी न चाहे, न ही वचन और काया से कराए । यदि कोई गृहस्थ, मुनि के शरीर में हुए गंड, अर्श, पुलक अथवा भगंदर को किसी विशेष शस्त्र से थोड़ा-सा छेदन करे या विशेष रूप से छेदन करे मवाद या रक्त निकाले या उसे साफ करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे, न ही वचन और काया से कराए । यदि कोई गृहस्थ, साधु के शरीर से पसीना, या मैल से युक्त पसीने को मिटाए या साफ करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे, और न ही वचन एवं काया से कराए । यदि कोई साधु के आँख का, कान का, दाँत का, या नख का मैल निकाले या उसे साफ करे, तो साधु उसे मन से न चाहे, न ही वचन और काया से कराए । यदि कोई गृहस्थ, साधु के सिर के लंबे केशों, लंबे रोमों, भौहों एवं कांख के लंबे रोमों, गुह्य रोमों को काटे अथवा संवारे, तो साधु उसे मन से न चाहे, न ही वचन और काया से कराए । यदि कोई गृहस्थ, साधु के सिर से जूँ या लीख निकाले या सिर साफ करे, तो साधु मन से न चाहे न ही वचन और काया से ऐसा कराए । आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद यदि कोई गृहस्थ, साधु को अपनी गोद में या पलंग पर लिटाकर या करवट बदलवा कर उसके चरणों को वस्त्रादि से एक बार या बार-बार भलीभाँति पोंछकर साफ करे; साधु इसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से उसे कराए । इसके बाद चरणों से सम्बन्धित नीचे के पूर्वोक्त ९ सूत्रों में जो पाठ कहा गया है, वह सब पाठ यहाँ भी कहना चाहिए । यदि कोई गृहस्थ साधु को अपनी गोद में या पलंग पर लिटाकर या करवट बदलवा कर उसको हार, अर्द्धहार, वक्षस्थल पर पहनने योग्य आभूषण, गले का आभूषण, मुकुट, लम्बी माला, सुवर्णसूत्र बांधे या पहनाए तो साधु उसे मन से भी न चाहे, न वचन और काया से उससे ऐसा कराए । यदि कोई गृहस्थ साधु को आराम या उद्यान में ले जाकर उसके चरणों को एक बार पोंछे, बार-बार अच्छी तरह पोंछे तो साधु उसे मन से भी न चाहे, और न वचन काया से कराए । इसी प्रकार साधुओं की अन्योन्यक्रिया - पारस्परिक क्रियाओं के विषय में भी ये सब सूत्र पाठ समझ लेने चाहिए । [५०७] यदि कोई शुद्ध वाग्बल से अथवा अशुद्ध मंत्रबल से साधु की व्याधि उपशान्त करना चाहे, अथवा किसी रोगी साधु की चिकित्सा सचित्त कंद, मूल, छाल या हरी को खोदकर या खींचकर बाहर निकाल कर या निकलवा कर चिकित्सा करना चाहे, तो साधु उसे मन से पसंद न करे, न ही वचन से या काया से कराए । यदि साधु के शरीर में कठोर वेदना हो तो समस्त प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व अपने किए हुए अशुभ कर्मों के अनुसार कटुक वेदना का अनुभव करते हैं । यही उस साधु या साध्वी का समग्र आचार सर्वस्व है, जिसके लिए समस्त इरहलौकिक पारलौकिक प्रयोजनों से युक्त तथा ज्ञानादि सहित एवं समितियों से समन्वित होकर सदा प्रयत्नशील रहे और इसी को अपने लिए श्रेयस्कर समझे । ऐसा मैं कहता हूँ । —
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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