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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुमओगवाराई - (१) नमो नमो निम्मतदसणास पंचम गणपर श्री सपा स्वामिने नमः ४५/अनओगदाराई (6) नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा-आभिणियोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपजवनाणं केवलनाणं 11-1 (२) तत्य चत्तारि नाणाई ठप्पाइं ठवणिमाई-नो उहिस्संति नो समुहिस्संति नो अणुनविनंति सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगोयपवत्तइ २2 (३) जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणु-ना अनुओगो य पत्तइ किं अंगपविठ्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवतइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसी अणुन्ना अनुओगो य पवत्ता अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ इमं पुण पट्टवणं पडुछ अंगवाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ ।३। (४)जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ कि कालियस उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्ता कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ उक्कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवतइ इमं पुण पट्टवणं पडुच्च उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ१४।-4 (6) जइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुोगो य पवत्तइ किं आवस्सयस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सयवतिरितस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुमओगो य पयत्तइ आवस्सयस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवतह आवस्सयवतिरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च आवस्मयस्स अनुऔगो।५। (६) जइ आवस्सयस्स अनुओगो आवस्सयण्णं किं अंग अंगाई सुपखंयो सुयखंधा अज्झयणं अजायणाई उद्देसो उद्देसा आवस्सयणं नो अंगं नो अंगाई सुयखंधो नो सुयखंघा नो अज्झयणं अज्झयणाईनो उद्देसोनो उद्देसा।६।-8 (७) तम्हा आवस्सयं निखिविस्सामि सुयं निक्खिविस्सामि खंधं निक्खिविस्सामि अज्झयणं निक्खिविस्सामि 191-7 (८) जत्य यजंजाणेशा निखेवं निक्खिये निरवसेसं जत्यविय न जाणेजा चउक्कयं निक्खिये तत्य (९) से किं तं आवस्सयं आवस्सयं घउव्यिहं पन्नत्तं तं जहा नामायस्सयं ठवणावस्सयं दव्वावस्सयं मायावस्सयं1८18 (१०) से किं तं नामावस्सयं नामावस्सयं-जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुमयस्स वा तदुभयाण वा आवस्सएति नामंकअइसे तं नामावस्सया। (११) से किंतंठवणावस्सयं ठवणावस्सयं-जण्णं कड़कम्मे वा चितकम्मे वा पोत्थकम्पे वा 1911-1 For Private And Personal Use Only
SR No.009775
Book TitleAgam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size2 MB
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