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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अापणं-२० ७३२॥-34 ७३३||-35 (४६) तओ काले पभायम्मि आपुच्छिताणं बंधवे खंतो दंतोनिरारंभो पव्वइओऽणगारियं (७r७) ततोहंनाहो जाओ अप्पणोय परस्सय सव्वेसिं चेय भूयाणं तसाण या घराण (७r८) अप्पा नई वेयरणीअप्पा मे कूडसामती अप्पा कामदुहा घेणू अप्पा मे नंदनं वनं १७३४।। -38 (७४१) अप्पा त्ता विकत्ताय दुहाण य सुहाणय अप्पा मित्तममित्तं च दुष्पट्ठिय सुपडिओ १७३५३)-37 (७५०) इमा हुअन्ना विअणाहया निवा तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि नियंठधम्म लहीयाण वी जहा सीयति एगे बहुकायरा नरा ॥३६॥-38 (७५१) जो पब्वइत्ताण महव्वयाइंसमंध नो फासयईपमाया अनिग्गहप्पा यरसेसु गिद्धे न मूलओ छिन्नइ बंधणं से ॥३७॥-39 (७५२) आउत्तया जस्सन अस्थि काइ इरियाए मासाए तहेसणाए आयाणनिक्खेवदुगुंछणाए न वीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥७३८॥-40 (७५३) चिरं पिसे मुंडरुई भवित्ता अधिरब्बए तवनियमेहि भड्ढे चिरं पि अप्पाण किलेसइत्तान पारए होइ हू संपराए ॥७३९||-41 (७५४) पोल्ले व मुट्ठी जह से असारे अयंतिए कूडकहायणे या राढामणी वेरुलियप्पगासे अमहग्घए होइ हु जाणएसु १७४०|-42 (७५५) कुसीललिंगंइह धारइत्ता इसिझयं जीविय चूहइत्ता असंजए संजयलप्पमाणे विणिग्यायमागच्छइ से चिरपि । (७५६) विसंतु पीयं जह कालकूडहणाइ सत्यं जह कुग्गहीयं एसो विधम्मो विसओववन्नो हणाइ देयाल इवाविवन्नो । ||७४२||-44 (७५७) जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे निमित्तकोऊहलसंपगाढे कुहेडविलासवदारजीवी न गच्छई सरणं तम्मि काले । ॥७४३||-45 (७५८) तमंतमेणेव उसे असीले सया दुही विपरियासुवेइ संघावई नरगतिरिक्खजोणि मोणं विराहेत्तु असाहुरूवे -46 (७५१) उद्देसियं कीयगडं नियागं न मुंचई किंच अणेसणिणं अग्गी विवा सब्बभक्खी पवित्ता इतो चुए गच्छइ कछुपावं ७४५||-47 (७५०) नतं अरी कंठछेता करेइजं से करे अप्पणिया दुरप्पा से नाहिई मधुमुहं तु पत्ते पच्छाणुतावेण दयाविहूणो १७४६।। -48 (७६१) निरट्ठिया नग्गरुई उ तस्स जे उत्तमटुं विवञ्जासमेइ । इमे विसै नत्यिपरे दिलोए दुहओविसे झिजइ तत्य लोए ७४७-49 (७६२) एमेव हा छंदकुसीलरुवे मागं विराहित्तु जिणुतमाणं । कुररी विवा मोगरसाणुगिद्धानिरहसोया परियावमेइ ७rat-50 (७१३) सोचाण मेहावि सुभासियं इमं अणुसासणं नाणगुणोववेयं मागं कुसीलाण जहाय सव्वं महानियंठाणं वए पहेणं ||७४९||-61 ७४१11-49 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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