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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1५४०11-14 उत्तरजायपापि-१०/१५२ (५५२) सरखपाए सुबई सेजन पडिलेहह संथारए अणाउत्ते पावसमणित्ति वुझाई (५५३) दुखदहीविगईओ आहारेई अभिक्षणं अरए यतवोकम्मे पावसमाणि तिथुधई ॥५१॥-15 (५५४) अत्यंतम्मिय सूरम्मि आहारेई अभिक्खणं चोइओपडिचोएइ पावसमणि ति युधई ॥५४२|| -18 (५५५) आयरियपरिम्राई परपासंडसेवए। गाणंगणिए दुब्लूए पावसमणि ति दुई ॥५४॥ -17 (५५६) सयं गेहं परिवल परगेहिसि वावरे निमित्तेणं यववहरइपावसमणि त्ति नई ||५५४|| -10 (५५७) सन्नाइपिण्डंजेमेइ नेच्छई सामुदाणियं गिहिनिसेअंच वाहेइपावसमणि त्ति वुधई ॥५५५11 -19 (५५८) एयारिसे पंचकुसीलसंखुडे रूवंधरे मुणिपवराण हेतिम अयंसि लोएविसमेव गरहिए नसे इहं नेव परत्य लोए ।।५५६||-20 (५५९) जे वञ्जए एएसया उ दोसे से सुब्बए होइ मुणीण माझे अयंसि लोए अमयं व पूइए आराइए लोगमिणं तहापरं ||५५७|| -21 त्ति बेमि स्तरसपं अापणं अमतं. अद्वारसमं अज्झयणं-संजइजं| (१०) कम्पिल्ले नयो राया ऊदिण्णबलवाहणे नामेणं संजए नाम मिगव्यं उवणिग्गए ॥५४८|| -1 (५६१) हयाणीए गयाणीए रहाणीए तहेवय पायत्ताणीए महया सव्वओ परिवारिए १५४९॥ -2 (५५२) मिए छुभित्ताहयगओ कंपिल्खुमाण केसरे पीए संते मिए तत्य बहेह रसमुच्छिए ॥५५०| (१३) अह केसरप्मि उजाणे अणगारे तवोधणे सम्झायझाणसंजुत्तेधपझाणं शियापई ॥५५॥4 (५४) अप्फोबमंडवम्मि शायइ नखवियासवे तस्सागए मिगे पास वहेइसे नराहिये ॥५५२॥ -6 (५१५) अह आसगओराया खिप्पमागम्म सो तर्हि हए मिए उ पसिता अणगारंतत्य पासई ॥५५३||-6 (1) अह राया तत्य संभंतो अणगारोमणाहओ मए उ मंदपुणेण रसगिद्धेण वित्तुणा ||५५४॥ -7 (५५७) आसं विसवइताणं अपगारस्स सोनियो विनएण वंदए पाए भगवं एत्य मे खमे 1५५५|| -9 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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