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(१७२९) अणुबद्धरोसपसरो तह य निमित्तम्मि होइ पडिलेवी एएहिं कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ
(१७३० ) सत्यगहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसोय अणायारमंडसेवी जम्मणमरणामि बंघंति
(१७३१) इय पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुए
उत्तराणि - १६/१७२९
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छत्तीसं उत्तरज्झाए भवसिद्धीयसंमए - त्ति बेमि ।। ● छत्तीसह असवर्ण समतं •
४३ उत्तरज्झयणाणि समत्तानि चउत्थं मूलसुत्तं समत्तं
||१६४०॥1-266