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गरहा - ५५६
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(५५६) उप्पायणाएँ दोसे सा साहू समुट्ठिए वियाणाहि या इमे मणिया
गहणे दसए सजाइ दोसे आयपर गिहिखाहु समुट्ठिए योच्छं ॥ ५१४॥-514 (५५७) दोत्रि उ साशुसमुत्या संकिय तह भावओऽ परिणयं च सेसा अट्टवि नियमा गिहिणो य समुट्ठिए जाण - (५५८) नामं ठवणा दविए भावे महणेसणा मुणेयव्या दव्वे वानरजूहं भारंमि य दस पया हुंति (१५९) परिसडियपंडुपत्तं वणसंडं दद्रु अनहिं पेसे जूहवई पडियरए जूहेण समं तहिं गच्छे (५६०) सयमेवालोएडं जूहवई तं वणं समंतेण
वियरइ तेसि पयारं घरिऊण य तो दहं गच्छे (५६१) ओपरंतं पर्य दट्टु नीह रंतं न दीसई
नालेण पियह पाणीयं नेस निक्कारणो दहो (५६२) संकिय मक्खिय निक्खित्त पिहिय साहरिष दायगुम्मीसे अपरिणयत्ति छड्डय एसणदोसा दस हवंति (५६३) संकाए धउभंगो दोसुवि गहणे य भुंजणे लग्गो जं संकियमावन्नो पणवीसा चरिमए सुद्धो (१३४) उग्गमदोसा सोलस आहाकम्माइ एसणादोसा नव मक्खियाइ एए पणवीसा घरिमए सुद्धो (५६५) छउमत्यो सुयनाणी उवउत्तो गवेसए उज्जुओं पयतेणं आवन्नो पणवीसं सुयनाणपमाणओ सुद्धो ( १६६) ओहो सुओवउत्तो सुयनाणी जइवि गिण्हड असुद्धं तं केवलीवि भुंजइ अपमाण सुयं भवे इहरा
(५६७) सुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो तओ य मोक्खस्स मोक्खस्सऽविय अभावे दिक्खपबित्ती निरत्या उ (५६८) किंतु ह खद्ध भिक्खा दिजह न य तरह पुच्छिउं हिरिमं इय संकाए घेतुं तं मुंजइ संकिओ चेव
(५९९) हियएण संकएणं गहिओ अत्रेणं सोहिया साय परायं पहेणगं वा सोउं निस्सकिओ मुंजे (५७०) जारिसय धिय लद्धा खद्धा भिक्खा भए अमुपगेहे अनेहिवि तारिसिया वियडंत निसामए तइए (५०१ ) जइ संका दोसकरी एवं सुद्धपि होइ अविसुद्धं निस्संकमेसियंतिय अणेसणिपि निद्दोसं (५०२) अविसुद्ध परिणामो एगयरे अवडिओ व पक्खमि एसिंपि कुणइ नेसिं अणेसिमेसिं विसुद्धो उ (५०३) दुविहं च मक्खियं खलु सचित्तं चैव होइ अचित्तं सचित्तं पुण तिविहं अचित्तं होइ दुविहं तु
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