________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाहा-८२ 1154911-640 // 542-541 // 543 / / -542 // 544||-543 // 54511-544 // 54611-545 // 5471-548 // 54811-547 549||-548 (842) अह मंसभि पहीणे झायंतं मच्छियं मणइ मच्छो किं झायसि तं एवं सुण ताव जहा अहिरिओऽसि (er3) चरियं व कप्पियं वा आहरणं दुविहमेव नायव्यं अत्यस्स साहणहा इंधणमिव औयणवाए (exr) तिबलागमुहा मुक्को तिक्खुत्तो वलयामुहे तिसत्तक्क्षुत्तो जालेणंसपं छिनोदए दहे (845) एयारिसं ममं सत्तं सदं घटिअघट्टणं इच्छसि गलेणं घेत्तुं अहो ते अहिरीयया (ere) अह होइ भाक्यासेसणा उ अप्पाणमप्पणा चेव साहू भुंजिउकामो अनुसासइ निझरहाए (847) यायालीसेसणसंकडंमि गहणमिजीवनहु छलिओ एपिंह जहन छलिजसि भुंजंतो रागदोसेहिं (848) जह अब्अंगणलेवो सगडक्खदणाण जुत्तिओ होति इय संजमभरवहणट्ठयाएँ साहूण आहारो (841) उवजीवि अनुवजीवी मंडलियं पुव्यवनिओ साहू मंडलिअसमुद्दिसगाण ताण इणमो विहिं वुच्छं (850) आगाढजोगवाही निढऽत्तडिया व पाहुणगा सेहा सपायछित्ता वाला युदेवमाईया (851) दुविहो खलु आलोगोदब्वे मावे य दवि दीवाई सत्तविहो पुण भावे आलोगं तंपरिकहेऽहं (852) ठाण दिसि पगासणया भायण पक्खेवणेय गुरु मावे सत्तविहो आलोगो सयाविजयणा सुविहियाणं (853) निक्खमपवेसमंडलिसागारियठाण परिहिय हाइ माएक्कासणभंगो अहिगरणं अंतरायं वा (854) पञ्चुरसिपरंमुहपट्टिपक्ख एया दिसा विवझेत्ता ईसाणग्गेईय व ठाएज गुरुस्स गुणकलिओ (855) मछियकंटट्ठाईणजाणणय पगासमुंजणया अडियलग्गणदोसायगुलिदोसाजन एवं (856) जे चेव अंधयारे दोसा तेचेव संकडमुहंमि परिसाडी बहुलेवाडणं च तम्हा पगासमुहे (857) कुक्कुडिअंडगमित्तं अविगियवयणो उपरिक्खये कवलं अइखद्धकारगं वाजंच अणालोइयं हुआ (858) एएसि जाणणहागुरु आलोए तओ उ भुंजेशा नाणाइसंघणवान वनबलरूवविसयट्टा (859) सोआलोइयभोई जो एए जुंजइ पए सव्ये गविसणगहणग्घासेसणाइ तिदिहाइवि विसुद्धं // 550 // -649 // 551||-650 // 275 भा.-276 ॥२७६||पा.-278 ॥२७७||पा.-277 // 278 // पा.-278 // 279 // पा.-279 ॥२८॥पा.-280 // 552 / 1-651 For Private And Personal Use Only