________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहनित्ति - (788) 150011-499 11501||-500 11502||-501 / / 503||-502 / / 504||-503 ||505||-504 // 506||-505 507||-608 ||508||-507 (788) बत्रबलरूवउँ आहारे जो त लामि लमंते अतिरेगंन उ गिण्हइ पाउगगिलाणमाईणं (789) जह सा हिरण्णमाइसु परिहीणा होइ दुक्खआभागी एवं तिगपरिहीणा साहू दुक्खस्स आभागी (790) आयरियगिलाणहा गिण्हन महति एव जो साहू नो वनस्लवहेउं आहारे एस उपसत्यो (791) उग्गमउपायणएसणाएँ बायाल होति अवराहा सोहेउं समुयाणं पडुपने वच्चए वसहिं (792) सुत्रधरदेउले वा असई य उवस्सयस वा दारे संसत्तकंटगाई सोहेउमुवस्सगं पविसे (793) संसत्तं तत्तो घिय परिहवेत्ता पुणो दवं गिण्हे कारण मत्तगहियं पडिग्गहे छोटु पवितणया (794) गामे य कालमाणे पहुचमाणे हवंति भंगऽ काले अपहुप्पंते नियत्तई सेसए मयणा (715) अण्णं च यए गाम अण्णंभाणं व गेह सइ काले पढमे वितिए छपंचमेय भय सेस य नियते (796) योसिहमागयाणं उब्वासिय मत्तए य भूपितियं पडिलेहियमत्थमणं सेसऽस्थमिए जहन्नो उ (797) भुत्ते थियारपूमी गयागयाणं तुजह य ओगाहे चरमाऐं पोरिसीए उक्कोसो सेस मन्झिमओ (798) पायप्पमञ्जण निसीहिया य तिनि उ करे पवेसंपि अंजलि ठाणविसोही दंडग उवहिस्स निक्खेयो (795) एवंपडुपन्ने पविसओ उ तिनि वनिसीहिया होति अग्गद्दारे मज्झे पवेस पाए य सागरिए {800) हत्थुस्सेहो सीसप्पणामणं वाइओ नमोक्कारो गुरुभायणे पणामो वायाएँ नमो न उस्सेहो (203) उवरि हेट्ठा य पमञ्जिऊण लडिंठवेज सट्ठाणे पट्टउवहिस्सुवर्रभायणवत्याणि भाणेसु (802) जइ पुण पासवणं से हवेज तो उग्गहं सपच्छागं दाउं अन्नस्स सचोलपट्टओ काइयं निसिरे (803) चउरंगुल मुहपत्ती उज्जुयए वामहत्थि रयहरणं दोसङ्घचत्तदेहो काउस्सग्गं करेजाहिं (504) चउरंगुलमप्पत्तं जाणुगहेट्ठा छियोयरिं नाहिं उमओ कोप्परधरिअंकरेन पट्टच पडलं वा (805) पुबुद्दिष्टे ठाण ठाउं चउरंगुलंतरं काउं मुहपोत्ति उज्जुहत्ये वाममि य पायपुंछणयं ||509 // -608 // 510|-509 ॥२२॥भा.-269 263|| पा.-284 264 // पा.-264 265|| भा.-285 1511 / / -510 // 266 // पा.-268 // 512||-511 For Private And Personal Use Only