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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अपणं-६ www.kobatirth.org (१०१४) जो एयं वयणं सोचा सद्दहे अनुचरेइ बा मसीलाण सब्वेसि सत्थवाहो स गोयमा (१०१५) एसो काउं पि पच्छितं पाण-संदेह-कारयं आणा - अवराह-पदीव - सिहं पविसे सलभो जहा (१०१६) भगवं जो बलविरियं पुरिसयार-परक्कमं अणि तो तवं चरइ पच्छित्तं तस्स किं भवे (१०१७) तस्सेयं होइ पच्छितं असढ - भावस्स गोयमा जो तं थामं वियाणित्ता वेरि सेण्णमवेक्खिया (१०१८) जो बलं वीरियं सत्तं पुरिसधारं निगूहए सो सपच्छित्त अपच्छित्तो सद-सीलो नराहमो (१०१९) नीया - गोतं दुहं घोरं नरए उक्कोसिय-द्विर्ति वेदितो तिरिय- जोणीए हिँडेजा चउगईए सो (१०२०) से भगवं पाचयं कम्पं परं वेइय समुद्धरे अननुभूएण नो मोक्खं पायच्छित्तेणं किं तहिं (१०२१) गोयमा दास-कोडीहिं जं अणेगाहिं संचियं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उस्सग रुइणो चैव सव्व-भावंतरेहिणं (१०२९) उवसंतस्स दंतस्स संजयस्स तवस्सिणो समिती - गुत्ति- पहाणस्स दढ चारितस्सासढभाविणी (१०३०) आतोएज्जा पडिच्छेजा देखा दविज वा परं अहन्निसं तदुद्दिद्धं पायच्छित्तं अनुच्चरे (१०३१) से भयवं केत्तियं तस्स पच्छितं हवइ निच्छियं पायच्छित्तस्स ठाणाई केवतियाई कहेहि मे ७८ll For Private And Personal Use Only ॥७९॥ ॥८०॥ ॥८१॥ ॥८२॥ तं च्छित्त - रवी पुढं पावं तुहिणं च विलीयई (१०२२) घनघोरंधयारतमतिमिस्सा जहा सूरस्स गोयमा पायच्छित - रविस्सेवं पाव-कम्मं पनस्सए (१०२३) नवरं जइ तं पच्छितं जह भणियं तह समुखरे असद-भाव अणिहिय-बल-विरिय पुरिसायार परक्कमे ॥८७॥ (१०२४) अन्नं च-काउ पच्छितं सव्वं येवं नमुच्चरे जो दरुद्धियसो सो दिहं घाउग्गइयं अडे (१०२५) भयवं कस्सालोएज्जा पच्छितं को वदेज्ज वा कस्स व पच्छित्तं देना आलोयावेज वा कहं (१०२६) गोयमाऽऽ लोयणं ताव केवलीणं बहुसुं वि जोयण-सएहिं गंतूणं सुद्धभावेहिं दिजए (१०२७) चउनाणीणं तयाभावे एवं ओहि मई-सुए जस्स विमलयरे तस्स तारतम्मेण दिज्जई (१०२८) उत्सग्गं पन्नवेंतस्स ऊसग्गे पट्टियस्स य 112311 ||28|| ॥८५॥ ॥८६॥ ॥८८॥ ॥८९॥ ॥९०॥ ||११|| ।।१२।। ॥९३॥ ॥९४॥ ॥९५|| ८९
SR No.009768
Book TitleAgam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size3 MB
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