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अपणं-६
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(१०१४) जो एयं वयणं सोचा सद्दहे अनुचरेइ बा मसीलाण सब्वेसि सत्थवाहो स गोयमा (१०१५) एसो काउं पि पच्छितं पाण-संदेह-कारयं
आणा - अवराह-पदीव - सिहं पविसे सलभो जहा (१०१६) भगवं जो बलविरियं पुरिसयार-परक्कमं
अणि तो तवं चरइ पच्छित्तं तस्स किं भवे (१०१७) तस्सेयं होइ पच्छितं असढ - भावस्स गोयमा
जो तं थामं वियाणित्ता वेरि सेण्णमवेक्खिया (१०१८) जो बलं वीरियं सत्तं पुरिसधारं निगूहए
सो सपच्छित्त अपच्छित्तो सद-सीलो नराहमो (१०१९) नीया - गोतं दुहं घोरं नरए उक्कोसिय-द्विर्ति
वेदितो तिरिय- जोणीए हिँडेजा चउगईए सो (१०२०) से भगवं पाचयं कम्पं परं वेइय समुद्धरे
अननुभूएण नो मोक्खं पायच्छित्तेणं किं तहिं (१०२१) गोयमा दास-कोडीहिं जं अणेगाहिं संचियं
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उस्सग रुइणो चैव सव्व-भावंतरेहिणं (१०२९) उवसंतस्स दंतस्स संजयस्स तवस्सिणो
समिती - गुत्ति- पहाणस्स दढ चारितस्सासढभाविणी (१०३०) आतोएज्जा पडिच्छेजा देखा दविज वा परं अहन्निसं तदुद्दिद्धं पायच्छित्तं अनुच्चरे (१०३१) से भयवं केत्तियं तस्स पच्छितं हवइ निच्छियं पायच्छित्तस्स ठाणाई केवतियाई कहेहि मे
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तं च्छित्त - रवी पुढं पावं तुहिणं च विलीयई (१०२२) घनघोरंधयारतमतिमिस्सा जहा सूरस्स गोयमा पायच्छित - रविस्सेवं पाव-कम्मं पनस्सए (१०२३) नवरं जइ तं पच्छितं जह भणियं तह समुखरे
असद-भाव अणिहिय-बल-विरिय पुरिसायार परक्कमे ॥८७॥ (१०२४) अन्नं च-काउ पच्छितं सव्वं येवं नमुच्चरे
जो दरुद्धियसो सो दिहं घाउग्गइयं अडे (१०२५) भयवं कस्सालोएज्जा पच्छितं को वदेज्ज वा
कस्स व पच्छित्तं देना आलोयावेज वा कहं (१०२६) गोयमाऽऽ लोयणं ताव केवलीणं बहुसुं वि जोयण-सएहिं गंतूणं सुद्धभावेहिं दिजए (१०२७) चउनाणीणं तयाभावे एवं ओहि मई-सुए जस्स विमलयरे तस्स तारतम्मेण दिज्जई (१०२८) उत्सग्गं पन्नवेंतस्स ऊसग्गे पट्टियस्स य
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