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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1१२४॥ ||१२५॥ 1॥१२ अनायण(६३२) परियटिए अपिहडे उब्मियण्णेमालोहडे इय ___ अच्छेख्ने अणिसढे अज्झोयरए य सोलसमे (६१३) इसे उप्पायणा-दोसा।३९-४। (६३) धाई दूई निमित्ते आजीव-वणीमगे तिगिच्छाय कोहे माने माया लोभे यहवंति दस एए (६३५) पुबि पच्छा संपव-विज्ञा-मंते य धुण्ण-जोगेय उप्पायणाए दोसा सोलसमे मूल-कम्मे य ।।१२६॥ (३६) एसणादोसा-1३९-५॥ (६३७) संकिय-मक्खिय-निक्खित-पिहिय-साहरिय-दायगुम्मीसे अपरिणय-लित्त-छड्डिय एसणदोसा दस हवंति ॥१२७॥ (६३८) तत्युग्गमदोसे गिहत्य-समुत्ये उप्पायणा दोसे साहुसमुत्ये एसणादोसे उभय-समुत्ये संजोयणा पमाणे इंगाले धूम कारणे पंचमंडलीय दोसे भवंति तत्य संजोयणा-उवगरण भत्तपाणसमंतर-बहि-भेएणं पमाणं ।३१-६॥ (६३९) बत्तीसं किर-कवले आहारो कुच्छि-पूरओ भणिओ रागेण सइंगालं दोसेण सधूमगंति नायव्वं (६४०) कारणं-३१-७) (६४१) वेयण-वेयावच्चे इरिय-डाए य संजम-हाए तह पाण-वत्तियाए छटुं पुण धम्म-चिंताए 1॥१२९॥ (६४२) नत्यि छुहाए सरिसिया वियणा मुंजेज्जा तप्पसमणड्डा ___ छाओ वयावच्चं न तरइ काउं अओ मुंजे (६४३) इरियं पिन सोहिस्सं पेहाईयंचसंजमं काउं थामो वा परिहायइ गुणणऽणुपैहासुय असत्तो ॥१३॥ (६४४) पिंडविसोही गया इयाणि समितीओ पंच तं जहा इरिया-समिती भासा-समिई एसणा-समिई आयाण भंड-मत्त-निक्खेवणा-समिती उद्यार-पास-वण-खेल-सिंधाण-जास-पारिद्वावणिया-समिती तहा गुत्तीओ तिन्नि-मण-गुत्ती वइ-गुत्ती काय-गुत्ती तहा भावणाओ दुवालस तं जहा अणिञ्चत्त-मावणा असरणत-मायणा एगत्त-भावणा अन्नत्त-भावणा असुइ-मावणा विचित संसार-भावणा कम्मासव-भावणा संवर-मायणा यिनिञ्जरा-मावणा लोगवित्यरमावणा धम्म सुयक्खायं सुपनत्तं तित्यपरेहिं ति मावणा तत्तचिंता भावणा बोहि-सुदुल्लभा-जमंतर-कोडीहिं वित्ति भावणा एवमादि-थाणंतरेसुंजे पमायं कुजा से णं चारित्त-कुसिले नेए।३९-८१३९॥ (६४५) तहा तव-कुसीले दुविहे नेए-बन्झ-तव-कुसीले अमितरतवकुसीले यतत्य जे केई विवित्त-अणसण-ऊणोदरिया-वित्ती-संखेयण-रस-परिचाय-कायकिलेस-संलीणयाए ति छट्ठाणेसुं न उनमेजा से णं बझ-तव-कुसीले तहा जे केइ विचित्तपच्छित्त-विनय-वेयावच्च-सज्झाय-झाणउसग्गम्मिचेएसुंछठाणेसुं न उनमेजा से णं अमितर-सब-कुसीले।४०। (६४६) तह पडिमाओबारस तंजहा।४१-१॥ (६४७) मासादी सत्तता एग दुगति-सत्तराइ दिणा तिन्नि अहराति एगराती भिक्खूपडिमाणं वारसंग ||१३२॥ ||१३०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.009768
Book TitleAgam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size3 MB
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