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अपर्ण (५६७) अमयाहारं मत्तीए देइ संयुणइ जाय य पसूओ
जह जाय-कम्म-विनिमोग-कारियाओ दिसा कुमारीओ ॥५॥ (५६८) सव् निय कत्तब् निव्यत्तंती जहेव मत्तीए
बत्तीस-सुर-वरिंदा गरुय-पमोएण सव्व-रिद्धीए 11८६|| (५६९) रोमंच कंचु-पुलइय-भतिब्मर-मोइय-सगत्ते
मन्ते सकयत्यं जपं अम्हाण पेरुगिरि-सिहरे (५७०) होही खणं अप्फालिय-सूसर-गंभीर दुंदुहि-निघोसा
जय-सह-मुहल-मंगल-कयंजली मह यखीर-सलिलेणं ||८|| (५७१) बहु-सुरहिं गंधवासिय-कंचण-मणि तुंग-कलसेहिं
जम्माहिसेय-महिमं करेंति जह जिनवरो गिरिं चाले ॥९॥ (५७२) मह इंदं वायरणं भयवं वायरइ अट्ट-बरिसोवि
जह गमइ कुमारत्तंपरिणे बोहितिजह व लोगंतिया देवा ॥९॥ जह-बय-निक्खमण-महं करेंति सब्वे सुरीसरा मुइया
जह अहियासे घोरे परीसहे दिव्व-माणुस-तिरिच्छे ॥११॥ (५७४) जह धण-धाइ-वउक्कं कम्मं दहइ घोर-तव-ज्झाण-जोग-अग्गीए लोगाऽलोग-पयासं उप्पाए जहय केवलनाणं ।
॥१२॥ (५७५) केवल-महिमं पुनरवि काऊणंजह सुरीसराईया
पुच्छंति संसए धम्म-नाय-तब चरणमाईए (५७६) महध कहेइ जिणिंदो सुर-कप-सीहासणोवविट्ठोय
तं चउबिह-देव-निकाय-निम्मियंजर व वर-समवसरणं
तुरियं करेंति देवा जंरितीए जगंतुलइ (५७७) जत्य समोसरिओ सो भुवणेक्क-गुरू महायसो अरहा
अद्वमह-पाडिहेरय-सुचिंधियं वहइ तित्ययं नामं ।।९५॥ (५७८) जह निद्दलह असेसं मिच्छन्तं चिक्कणं पि भव्वाणं पडिबोहिऊण मग्गे ठवेइजह गणहरा दिक्खं
॥१६॥ (५७९) गिण्हंति महा-मइणो सुतं गंयंतिजह वयलिणिंदो
भासे कसिणं अत्यं अनंत-गम-पनवेहिंतु (५८०) जह सिज्झइ जग-नाहो महिमं नेव्वाण-नामियं जहंय सव्वे विसुर-वरिंदा असंभवे तह वि मुचंति
१९८॥ (५८१) सोगत्ता पगलंतंसु-धोय-गंडयल-सरसइ-पवाहं कलुणं विलाव-सदंशसामि कया अनाह त्ति
॥१९॥ (५८२) जह सुरहि-गंध-गब्मिण-महंत-गोसीस-चंदण-दुमाणं
कद्वेहि विही-पुव्वंसक्कारं सुरवरा सव्ये (५८३) काऊणं सोगत्तासुण्णे दस-दिसि-वहे पलोयंता
जह खीर-सागरे जिन-वराण अट्ठीपखालिऊणंघ (५८४) सुर-लोए-नेऊणं आलिंपेऊण एवर-चंदण-नसेणं मंदार-पारियायय-सयवत्त-सहस्सपत्तेहि
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