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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 महानिसीहं - 1/-१४१५ मंगलाणं च सव्वेसिं पढम हवइ मंगलं इति घूल सिट्ठ-सत्तम-दुम-दिने तेणेव कम-विपागेण आयंबिलेहिं अहिज्जेयव्वं एवमेयं पंचमंगल-महा-सुयक्खंधं सर-वत्तय-रहियं पयक्खर-बिंदु मताविसुद्ध गुरु-गुणोवदेय गुरुवइ8 कसिणमहिञ्जित्ता णं तहा कायदं जहा पुवाणुपुबीए पच्छाणुपुव्वीए अनानुपुवीए जीहागे तरेला तओ तेणेवाणंतरभणिय-तिहिकरण-मुहत्त-नक्खत-जोग लग्ग-ससी-बल-जंतु-विरहिओगासे चेइयाल-गाइकमेणं अट्ठम-पत्तेणं समणुजाणाविऊणं गोयमा महया पबंधेण सुपरिफुडं निउणं असंदिद्ध सुत्तत्यं अणेगहा सोऊण अवधारेयव् एयाए विहीएपंचमंगलस्स णं गोयमाविणओयहाणे कायध्वे ।।२।। (४९४) से पपवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुपखंघस्स सुत्तत्थं पत्रत्तं गोयमा इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स गं पंचमंगल-महासुयखंधस्सणं सत्ताधं-पन्नत्तं तंजहा-जे णं एसपंचमंगल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल तेल-कमल-परयंद-व्य-सब्बलोए पंचस्थिकावमिव जहत्य किरियाणुगय-समय-गुणुक्कितणे जहिछिय-फल-पसाहगे चेय परम-युइवाए से य परमयुई केसि कायव्या सव्व-जगुत्तमाणं सदगुतमुत्तमे यजे केई भूए जे केई भविंसुजे केई पविस्संति ते सव्वे घेब अरहंतादओ चेव नो नमण्णे ति ते य पंचहा अरहंते सिद्धे आयरिए उदझाए साहयो य तत्थ एएसिं चेव गदमत्थसमावो इमो तं जहा-स-नरामरासुस्स णं सय्वस्व जगस्स अट्ठ-महा-पाडिहेराइ-पूयाइस ओवलक्खियं अणण्ण-सरिसमचिंतपमप्पमेयं केवलाहिद्वियं पवरुत्तमत्तं अरहंति ति अरहंता असेस-कम्म-क्खएणं निद्दढ-मवंकरताओ न पुणेह पति जम्मं ति उव्यञ्जति वा अरुहंता वा निम्पहिय निहप-निद्दलिय-विलूय-निविय अभिभूय-सुदुञ्जयासेस-अट्ट-पयारकम्मरिउत्ताओवा अरि-हते इ वा एवमेते अणेगहा पत्रविजंति परुविजंति आघविनंति पट्टविअंति दंसिजति उददंसिझंति तहा-सिद्धाणि परपाणंद-महसव महकालाण-निरूवम-सोक्खाणि निप्पकंप-सुक्क ग्झाणाइअवित-सत्ति-सामत्यओ सजीववीरिएयं जोग-निरोहाइणा मह पयत्तेणिति सिद्धा अष्ट प्पयार-कम्मक्खएण या सिद्धं सज्झमेतेसि ति सिद्धा तिय-माज्झायमेसिमिति वा प्तिद्धि सिद्धे निहिए पहीणे सयल-पओपण-वाय-कयंबमेतेसिमिति या सिद्धा एवमेते इत्यी-पुरिस नपुंससलिंग-अन्नलिंग-गिहिलिंग-पत्तेय बुद्ध-बुद्ध बोहिय-जाव णं कप्म-खय-सिद्धा य भेदेहि णं अगेगहा पत्रविझंति तहा-अट्ठारस-सीतंग-सहस्साहिद्विय-तणू छत्तीसइविहमायारं जह-ट्ठियमगिलाए-महण्णिसाणुसमयं आयरंति पवत्तयंति ति आयरिया परमप्पणय हियमायरंति ति आयरिया भव्य सत्त-सीस-गणाणं या हियमायरंति आयरिया पाण-परिचाए वि उ पुढवादीणं समारंभ नायरंति नापरंभंति नाणुजाणंति वा आयरिया सुमहावरद्धे वि न कस्सई मणसा वि पावमायरंति ति या आपरिया एवमेते नाम-उवणादीहिं अणेगहा पविजंति तहा-सुसंवुडासवदारे-मणो-चइ-काय-जोगत्त-उवउत्ते विहिणा सर-यंजण-मत्ता-बिंदु-पयक्खर-विसुद्ध-दुवालसंगसुय-नाणज्झयण-झावणेणं परमप्पणो य मोस्खोवायं ज्झायंतित्ति उवन्झए थिर-परिचियमनंतगम-पञ्जवत्थेहिं वा दुवालसंग सुयनाणं चिंतंति अनुसरंति एगण-माणसाझायतित्ति वा उवज्झाए एवमेते हि अनेगहा पन्नविजंति तहा-अचंत-कट्ठ-उपगुग्गयर-घोरतय-चरणाइ-अणेगवय-नियमोबवास-नानाभिगह-विसेस-संजम परिवालण-सप्म-परिसहोवसग्गाहियासणेणं सव्य-दुक्खविमोक्खं मोक्खं साहयंति त्ति साहवो अयमेव इमाए चूलाए भाविनइ एतेसिं नमोकारो For Private And Personal Use Only
SR No.009768
Book TitleAgam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size3 MB
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