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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ पहानिसीह - २/३/३९५ पाव-कम्मे सव्वाओ इत्यीओ वाया मणसा य कम्मुणा तिविहं तिविहेणं अनुसमयं अमिलसेज्जा तहा अनंतकरज्झवसाय-अज्झदसिएहिं चत्ते हिंसारंभ-परिगहासते कालं गमेशा एएसिं दोण्हं पिणं गोयमा अनंत-संसारियत्तणं नेयं ॥१५॥ (३९६) भयवं जे णं से अहमे जे विणं से अहमाहमे पुरिसे तेर्सि व दोण्हं पि अनंतसंसारियत्तणं समक्खायं तो णं एगे अहमे एगे अहमाहमे एतेसिं दोण्हं पि पुरिसावत्याणं के पइविसेसे गोयमा जे णं से अहम-पुरिसे से र्ण जइ वि उ स-पर-दारासत्त-माणसे कूरझवसाय झवसिएहिं चित्ते हिंसारंभ-परिणहासत्त-चित्ते तहा विणं दिक्खियाहिं साहुणीहिं अन्नयरासुंच सील-संरक्षण-पोसहोववास-निरयाहि दिक्खियाहि गारस्थीहि वा सर्द्धि आवडिय-पेलियामंतिए विसमाणे नो वियमं समायरेजा जे यणं से अहमाहमे पुरिसे से णं निय-जणणि-पभिईए जाय णं दिक्खियाईहिं साहणीहिं पि समं वियम्मं समायरेजा ते णं चेव से महा-पाव-कम्मे सब्दाहमाठमे समक्खाए से णं गोयमा पइ-विसेसे तहा य जे णं से अहम्म-पुरिसे से णं अनंतेणं कालेणं बोहिं पावेजा जे य उ ण से अहपाठपे महा-पावकारी दिक्खियाहि पि साहुणीहि पि समं वियम्म समायरिजा से णं अनंत-हुतो वि अनंत-संसारमाहिंडिऊणं पि बोर्हि नो पावेजा एसे य गोयमा बितिए पइ-विसेसे ११६१ (१७) तत्य णंजे से सबुत्तमे से णं छउमत्य-बीयरागे नेए जेणं तु से उत्तमुत्तमे से णं अणिद्धि पत्त पभितीए जाय णं उवसामग-खवए ताव णं निओयणीए जेणं च से उत्तमे से णं अप्पमत्तसंजए नेए एवमेएसिं निरूपणा कुजा।१७। (३९८) जेउ न मिच्छदिट्ठी भवित्ताणं उग्गबंभयारी भवेझा हिंसारंम परिणहाईणं विरए से णं मिच्छ-ट्ठिी चेव नेए नो णं सम्मदिट्टी तेसिं च णं अविश्य जीवाइ-पयत्य-सब्भावाणं गोयमा नो णं उत्तमते अभिनंदणिझे पसंसणिजे या मवई जओ तेणं ते अनंता-मविए दिव्योरालिए विसए पत्थेरेजा अन्नं च कयादी ते दिग्वित्थियादओ संचिक्खिय तओ णं बंमव्वयाओ परिमंसेझा नियाणकडे वा हवेजा। (३९१) जे यणं से विमझिमे से णं तं तारिसमज्झवसायमंदीकिचाणं विरयाविाए दध्ये ॥१९॥ (४००) तहा गंजे से अहमे जे यणं से अहमाहमे तेसि तुणं एगंतेणं जहा इत्यीसुं तहाणं नेए जावणं कम्म-डिई समजेझा नवरं पुरिसस्सणं संचिखणगेसु बच्छरुहोवरतल-पक्खएसुंलिंगे यअहिययरं रागपुष्पजे एवं एते वेव छप्पुरिसविमागे।२०। (101) कासिं चि इत्यीणं गोयमा भव्यत्तं सम्मत्त-ददत्तं च अंगी-काऊणं जावणं सव्वुत्तमे पुरिसविमागे तावणं चिंतणिज्जे नो णं सब्वेसिमित्यीणं ।२१। (४०२) एवं तु गोयमा जीए इत्थीए -ति कालं पुरिससंजोग-संपत्ती न संजाया अहा णं पुरिस-संजोग-संपत्तीए वि साहीणाए जाव णं तेरसमे चोइसमे पत्ररसमे णं च सपएणं पुरिसेणं सर्द्धिन संजुत्ता नो वियमं समायरियं से णंजहा घण-कट्ठ-तण-दारु-समिद्धे केई गामे इवा नगरे। घा रणे इवा संपलिते चंडानिल-संघुक्किए पयलित्ताणं पयलित्ताणं निडझिय निडझिय चिरेणं उवसमेजा एवं इगवीसमे बावीसमे जाद णं सत्ततीसइमे समए जहा णं पदीय-सिहा वावन्ना पुणरवि सयं वा तहाविहेणं चुण्ण-जोगेणं वा पयलिझा या एवं सा इत्यी पुरिस-दसणेण वा पुरिसालायग-सवणेण या मदेणं कंदप्पेणं कामग्गिए पुनरवि उ पयलेना।२२१ For Private And Personal Use Only
SR No.009768
Book TitleAgam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size3 MB
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