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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ ॥१५॥ 11१५७॥ महानिसीई-9/1१६१ (१६१) नालोएमी अहंसमणी दे कहं किंचि साहुणी बहुदोसं न कहंसमणीजं दिलु समणीहिं तं कई ॥१५॥ (१६२) असावञ्ज-कहा समणी षहु आलंबणा कहा पमायखावगा समणी पाविट्ठा बल-मोडी-कहा (१९३) लोग-विरुद्ध-कहा तह य परववएसाऽऽलोयणी सुय-पच्छिता तहयजायादी-मय-संकिया (१६४) मूसगार-भीरुया चेवगारव-तिय-दूसिया तहा एवमादि-अनेग-भाव-दोस-वसगापावसल्लेहिं पूरिया ॥१५८॥ (१६५) निरंतरा अनंतेणं काल-समएण गोयपा अइक्कंतेणं अनंताओसमणीओबहु-दुक्खायसहं गया ॥१५९॥ (१६६) गोयमअनंताओ चिट्ठतिजाअनादी-सल-सल्लिया भाव-दोसेक्क-सल्लेहिं मुंजमाणीओ कडु-विरसंघोरग्गुग्गतरं फल||१६०॥ (१६७) चिट्ठइस्संति अञ्जवि तेहिं साल्लेहिं सल्लिया अनंत पि अनागपं कालं तम्हा सल्लं सुसुहुमंपि समणीनो धारिज्जा खणं ति ||१६॥ (१६८) धग-धग-धगस्स पञ्जलिए जालमालाउले दढं हुयवहे वि महाभीमेस सरीरंदुज्झए सुहं ॥१२॥ पयलिंतिंगार-रासीए एगसिझंपंपुणो जले घल्तिो गिरितो सरिरंजं मरिजेयं पि सुक्करं ॥१६॥ (१७०) खंडिय-खंडिय-सहत्येहिं एक्केकमंगावयवं जंहोमिझइ अग्गीए अनु-दियहेयं पिसुक्कर ॥१६४॥ (१७१) खर-फरुस-तिक्ख-करयत्त-दंतेहिं फालाविउं लोणूस-सज्जिया-खारंजं धत्तावेयं पिस-सरीरेऽनंत-सुक्कर जीवंतो सयमवी सक्कंखल्लं उत्तारिऊनय (१७२) जव-खार-हलिद्दादीहिं जं आलिंपे नियंतणुमेयं पिसुक्कर छिंदेऊणं सहत्येणंजो धत्तेसीसं नियं। ॥१६६॥ (१७३) एयं पिसुक्करमलीहं दुक्करं तय-संजमं नीसल्लं जेणतं भणियं सल्लो य निय-दुक्खिओ १६७॥ (१७४) माया दंभेण पच्छण्णो तं पायडिउंन सक्कए राया दुचरियं पुच्छे अह साहह देह सव्यस्सं १६८॥ (१७५) सव्वस्सं पि पएजा उनो निय-दुधरियं कहे राया दुचरियं पुच्छे साह पुहइंपि देमि ते 11१६९॥ (१७६) पुहवी रजं तणं भन्ने नो निय दुधरियं कहे राया जीयं निकिंतामि अह निय-दुचरियं कहे (१७७) पाणेहिं पि खयंजतो निय-दुधरियं कहेइ नो सव्वस्सहरणं चरजंच पाणे वी परिचएसुणं ||१६५॥ १७०॥ ॥१७१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.009768
Book TitleAgam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size3 MB
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