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॥१५॥
11१५७॥
महानिसीई-9/1१६१ (१६१) नालोएमी अहंसमणी दे कहं किंचि साहुणी बहुदोसं न कहंसमणीजं दिलु समणीहिं तं कई
॥१५॥ (१६२) असावञ्ज-कहा समणी षहु आलंबणा कहा
पमायखावगा समणी पाविट्ठा बल-मोडी-कहा (१९३) लोग-विरुद्ध-कहा तह य परववएसाऽऽलोयणी
सुय-पच्छिता तहयजायादी-मय-संकिया (१६४) मूसगार-भीरुया चेवगारव-तिय-दूसिया तहा
एवमादि-अनेग-भाव-दोस-वसगापावसल्लेहिं पूरिया ॥१५८॥ (१६५) निरंतरा अनंतेणं काल-समएण गोयपा
अइक्कंतेणं अनंताओसमणीओबहु-दुक्खायसहं गया ॥१५९॥ (१६६) गोयमअनंताओ चिट्ठतिजाअनादी-सल-सल्लिया
भाव-दोसेक्क-सल्लेहिं मुंजमाणीओ कडु-विरसंघोरग्गुग्गतरं फल||१६०॥ (१६७) चिट्ठइस्संति अञ्जवि तेहिं साल्लेहिं सल्लिया
अनंत पि अनागपं कालं तम्हा सल्लं सुसुहुमंपि समणीनो धारिज्जा खणं ति
||१६॥ (१६८) धग-धग-धगस्स पञ्जलिए जालमालाउले दढं हुयवहे वि महाभीमेस सरीरंदुज्झए सुहं
॥१२॥ पयलिंतिंगार-रासीए एगसिझंपंपुणो जले घल्तिो गिरितो सरिरंजं मरिजेयं पि सुक्करं
॥१६॥ (१७०) खंडिय-खंडिय-सहत्येहिं एक्केकमंगावयवं जंहोमिझइ अग्गीए अनु-दियहेयं पिसुक्कर
॥१६४॥ (१७१) खर-फरुस-तिक्ख-करयत्त-दंतेहिं फालाविउं
लोणूस-सज्जिया-खारंजं धत्तावेयं पिस-सरीरेऽनंत-सुक्कर
जीवंतो सयमवी सक्कंखल्लं उत्तारिऊनय (१७२) जव-खार-हलिद्दादीहिं जं आलिंपे नियंतणुमेयं पिसुक्कर छिंदेऊणं सहत्येणंजो धत्तेसीसं नियं।
॥१६६॥ (१७३) एयं पिसुक्करमलीहं दुक्करं तय-संजमं
नीसल्लं जेणतं भणियं सल्लो य निय-दुक्खिओ १६७॥ (१७४) माया दंभेण पच्छण्णो तं पायडिउंन सक्कए राया दुचरियं पुच्छे अह साहह देह सव्यस्सं
१६८॥ (१७५) सव्वस्सं पि पएजा उनो निय-दुधरियं कहे राया दुचरियं पुच्छे साह पुहइंपि देमि ते
11१६९॥ (१७६) पुहवी रजं तणं भन्ने नो निय दुधरियं कहे
राया जीयं निकिंतामि अह निय-दुचरियं कहे (१७७) पाणेहिं पि खयंजतो निय-दुधरियं कहेइ नो
सव्वस्सहरणं चरजंच पाणे वी परिचएसुणं
||१६५॥
१७०॥
॥१७१॥
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