________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
०५
॥३४०॥
॥३४१॥
|४२॥
॥३४३॥
||३४४॥
|३४५॥
।।३४६॥
||३४७||
अज्ययणं(१२७१) धाविउं गुप्पिउं सुइरं खिजिऊण अहत्रिसं
कागिणिं कागिणी काउं अद्धं पायं विसोयगं (१२८०) कत्यइ कहिंचि कालेणं लक्खं कोडिं च मेलिउं
जइएगिच्छा मई पुत्रा बीया नो संपज्जए (१२८१) एरिसयं दुललियत्तं सुकुमालतंय गोयमा
धम्पारंमम्मि संपडइ कम्मारंभे न संपडे (१२८२) जेणंजस्स मुहे कपलं गंडी अन्नेहिं धेज्जए
मसीए न ठवए पायं इत्थी-लक्खेसु कीडए (१२८३) तस्सा विणं पवे इच्चा अत्रंसोऊण सारियं
समोठ्ठहामितं देसं अह सोआणं पडिच्छओ (१२८४) साम-भय-पयाणाई अह सो सहसा पउंजिउं
तस्स साहस-तुलणट्टा गूढ-चरिएण वधाइ (१२८५) एगागी कप्पडा-बीओ दुग्गारण्णं गिरी-सरी
लंघित्ता बहु-कालेणं दुक्खदुक्खं पत्तो तर्हि (१२८६) दुखंखु-खाम-कंटो सोजाभमडे धराधर
जायंतो छिह-माइंतत्यजइ कह विन नञ्जए (१२८७) ता जीवंतो न चुक्केशा अह पुणेहि समुधरे
तओ णं परवत्तियं देह तारिसोस-गहे विसे (१२८८) को तम्मि परियणो मत्रे ताहे सो असि-नाणाइसु
नियचरियं पायडेऊणं जुञ्ज-सञ्जो भवेऊणं (१२८९) सव्व-बला थोभेणं खंडं खंडेण जुज्झिउं
अहतं नरिदं निञ्जिणइ अह या तेण पराजियए (१२९०) बहु पहारगलंत रुहिरंगो गय-तुरया उद्ध-अहो मुहो
निवडइ रणभूभीए गोयमा सोजया तया (१२९१) तं तस्सदुललीयत्तं सुकुमालत्तं कहि वए
जे केवलं पिस-हत्येणं अहो-भागंच धोविउं (१९९३) नेच्छतो पायं ठविउं भूमीए न कयाइवि
एरिसो वी स दुललिओएपावत्य अ वी गओ (१२९३) जई भण्णे धम्म घेढ़े ता पडिभणइन सक्किमो
ता गोयम अन्नानं पाव कप्माण पाणिणं (१२९४) धम्म-माणम्मिमइ न कयाइ विमविस्सए
एएसि इमो धम्मो एक्क-जम्मीनभासए (१२९५) जहा खंत-पियंताणंसव्यं अहाण होहिई
ताजोजंइच्छेतं तस्स जइ अनुकूलं पवेइए (१२९६) तो वय-नियम विहूणा विमोक्खमिच्छंति पाणिणो
एएएतेण रूसंति परिसं चिय कहेयब्द
॥३४८॥
॥३४॥
11३५011
11३५१॥
॥३५२॥
||३५३||
॥३५४||
||३५५!!
॥३५॥
॥३५७॥
For Private And Personal Use Only