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अायणं-६
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(१०८७) सीहं वग्धं पिसायं या घोर रूवं मयंकरं
उगिलमाणं पिलीएचा न कुसीलमगीयत्थं तहा (१०८८) सत्तजम्मंतरं सत्तुं अवि मण्णेजा सहोयरं
जं पत्तं तं निसामित्ता लहु गीयत्यो मुनी भवे (१०९१ ) से भयवं नो वियागेहं ईसरो को वि मुनिवरी किं वा अगीयत्य- दोसेणं पत्तं तेण कहेहि णे (१०९२) चउवीसिगाए अन्नाए एत्य भरहम्पि गोयमा पढमे तित्थंकरे जड़या विही-पुवेण निव्बुड़े (१०९३) तइया नेव्याण-महिमाए कंत-रूवे सुरासुरे निवयंते उप्पयंते दङ्कं पचंतवासिओ (१०९४) अहो अच्छेरयं अजं मञ्चलोयग्नि पेच्छिमो
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वय-नियमं जो विराहेजा जणयं पिक्खे तयं रिडं (१०८९) वरं पविट्ठो जलियं हुयासणं न या वि नियमं सुहुमं विराहियं वरं हि मच्छू सुविसुद्ध कम्पुणो न यादि नियमं भंतूण जीवियं ॥ १५३ ॥ (१०१०) अगीयत्यत्तदोसेणं गोयमा ईसरेण उ
न इंद्रजालं सुमिणं या विदिट्टं कत्थई पुणो (१०९५) एवं वीहा पोहाए पुव्वं जातिं सरितु सो
मोहं गंतूण खणमेक्कं मारुया ऽऽसासिओ पुणो (१०९६) थर पर परस्स कंपतो निंदिउं गरहिउं चिरं
अत्ताणं गोषमा धणियं सामन्नं गहिउमुञ्जओ (१०९७) अह पंचमुट्ठियं लोपं जावाऽऽढवइ महायसो सविनयं देवया तस्स रयंहरणं ताव ढोयई
(१०९८) उागं कटुं तवारणं तस्स दङ्कण ईसरो
लोओ पूयं करेमाणी जाव उ गंतूण पुच्छई (१०९९) केण तं दक्खिओ कत्थ उप्पन्नो को कुलो तव सुत्तत्थं कस्स पामूले सासिय हो समज्जियं (११००) सो पद्योगबुद्धो वा सव्यं तस्स वि बागरे
जाई कुलं दिक्खा सुतं अत्य जह य समज्जियं (११०१) तं सोऊण अहन्नो सो इमं चिंतेइ गोयमा
अलिय अणारिओ एस लोगं दंभेण परिमुसे (११०२) ता जारिसमेस मासेइ तारिलं सो वि जिनवरो न किंचेत्य वियारेण तुण्डिक्के ई वरं ठिए (११०३) अहवा नहि नहि सो भगवं देवदानव-पणमिओ माणोगयं पिजं मज्झं तं पि छिन्नेज्जा संसयं (११०४) तावेस जो होउ सो होउ किं वियारेण एत्थ मे अभिनंदामीह पव्व सव्य - दुक्ख-विमोक्खाणि
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