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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाहा-१४७० ||१४७०॥ ॥१४७१॥ 11१४७२॥ 1१४७३॥ ||७४ा ||१४७५11 11१४७६|| ॥१४७७॥ ॥१४७८॥ (१४७०) ओहे उयग्गहे या दुविहो उवही तुहोति नायब्बो ओहोदही तुतिण्डं ओवग्गहिओभवे दोण्डं (१४७१) जिनकप्पे धेरकप्पे कप्पातीते यतिहमोघोतु येराणमुवगहिओ साहूणं संजतीणं च (१४७२) वारसचोइस पणुवीस नवय एककोय निरुयही चेव जिनरअञ्जपतेयबुद्धतित्थकरतित्थकरे (१४७३) पाणीपडिग्गहीता पडिगहधारीय होति जिनकप्पे येरा पडिग्गहधरा कप्पादीया उ मजियव्या (१४७४) बियतियचउकूकपणए नव दस एक्कारसेवबारसगं एते अट्ठ विकप्पा उवहिम्मिवि होति जिनकप्पे (१४७५) अहवादुगंच पणगं उवहिस्स उ होति दोनिवि विकप्पा पाणिपडिग्गहियाणं अपाउयपाउयाणंच (१४७६) रयहरणं मुहपोत्ती एयंदुयगं अपाउयंगाणं रयहरणंमुहपोत्ती तित्रिय पच्छाद इतरेसिं (१४७७) उग्गहधारीणंपिय दुविहो उवही समासओ होति नवविह वालसविहो अपाउयसपाउयाणंच (१४७८) पत्तंपत्ताबंधो पायठ्ठवणं च पायकेसरिया पडलाई रयत्ताणं च गोच्छओ पायनिओगो (१४७९) रयहरणंमुहपोत्ती नवहा एसो अपाउयंगाणं इयरेसिं एसेयय अतिरेगा तिन्नि पच्छागा (१४८०) एते चेय दुवालसमत्तउ अतिरेग चोलपट्टोय एसोय चोइसयिहो उवही खलु धेरकप्पम्मि (१४८) अजाणं एसेय य चोलत्याणम्मिनदरि कमदंतु अतिरेग अंगलग्गा इमे उ अत्रे मुणेयव्या (१४८२) उगह नंतग पट्टो अड्ढोरुग चलणियाय बोद्धन्दा __ अभितर बाहिनियंसणी य तह कंचुए चेय (१४८३) उक्कच्छिय देकच्छिय संघाडीचेव खंधकरणीय ओहोवहिम्मि एते अजाणं पत्रवीसंतु। (१४८r) सत्तय पडिग्गहम्मीरयरहरणं चेव होति मुहपोती एसोतु नवविकप्पो उवही पत्तेयबुद्धाणं (१४८५) एगो तित्वगराणं निक्खममाणाण होइ उवही उ तेण परंनिरुवहिऊजावज्जीवाए तित्थगरा (१४८६) जिणा वारसरुवाई येरा घोहसरूविणो अजाणं पन्नवीसंतु अतो उड्ढे उवगहो (१४८७) एसो उयहीकप्पो समासओ वत्रिओजहाकमसो संभोगकपमहुणा समासतो मे निसामेह ||१४७२॥ 119४८०॥ 11१४८१11 १४८२|| १४८३|| ॥१४८४॥ १४८५10 ||१४८६॥ ||१४८७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.009767
Book TitleAgam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages164
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 38, & agam_panchakalpa_bhashya
File Size3 MB
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