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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गाहा ७१७ 38 4 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७१७ ) उवठाषियस्स एवं संभुजणता तहेव संवासो बितियपदं संबंधी ओमादिसु मा हु बहिभावं ( ७१८) मुंजीसु मए सद्धिं इयाणि नेच्छंति मा तु बहिभावं अहखायंति व ओमे पच्छन्ने जेण भुंजंति (७१९) एमादिणा तु भावं ताहे अप्पत्तं अहवऽपत्तं वा उवठायेतुं भुंजति अपरिणते चित्तरक्खट्ठा ( ७२० ) उवठाविय संभुत्ते संवासी एत्य होति कायच्चो बितियपऍ संवसेना अनुवट्ठवियंपिमेहिं तु ( ७२१) अन्नत्य नत्थि ठाओ अहवा होजाहि सोऽवि एगागी न य कप्पति एगस्सा संवासी तेण संवासी (७२२ ) सचित्तदवियकप्पो एमेसो बत्रिओ महत्थो तु अचित्तदवियकप्पं एत्तो बोच्छं समासेणं (७२३) आहारे उवहिष्मि य उवस्सए तह य परसवणए य सेज निसेजद्वाणे दंडे चम्मे चिलिमिणीय (७२४) अवलेहणिया दंताण धोवणे कण्हसोहणे चैव पिप्पलग सूति नक्खाण छेदणे घेव सोलसमे (७२५) आहारो खलु दुविहो लोइय लोउतरो य नायव्वो तिविहो य लोइओ खलु तत्य इमो होइ नायव्वो (७२६) मायणे भोयणे चेव भुंजियव्वे तदेव य माणे तु इमं थेरा गाहासुत्तमुदाहरे ( ७२७) सुवण्णरजते भोजं मणिसेले विलेवणं धतमायास पर्यंतंबे पाणसुहं च मिम्मते ( ७२८) सूवोदणं जवण्णं तिनि य मंसाणि गोरसो जूसी भक्खा गुललावणिया मूल फलं हरियगं डागो ( ७२९) होइ रसाली य तहा पाणं पाणीय पाणगं चैव सागं चद्वारसहा निरुवहतो लोगपिंडो सो (७३०) सूवगहणेण गहिता वंजणभेदा उ जत्तिया लोए ओदणगहणं पुण सत्तविहो ओदणी होति (७३१) जातु जवण्णं मण्णति तित्रि तु मंसाणि जलयरादीणं गोरसो खीरादी उ मुग्गपडोलादि जूसो तु (७१२) भक्खविहि उल्लसुक्खा गुलकत तह लावणी त बोद्धव्या मूलग अल्लगमादी मूलं अंबादिग फलं तु (७३३) हरितग मूलकुढेरग भूयणगादी य होति नायव्वो डागोय गोरसकओ पजेवणादी बहुविहाणो For Private And Personal Use Only ॥७१७॥ १७१८|| 1109811 १७२०॥ ७२१॥ |७२२॥ ॥७२३ ॥ *० ।।७२४|| ★ १७२५॥ ।।७२६ ॥ ।।७२७॥ ॥ २२८ ॥ ।।७२९ ।। ॥७३० ॥ ।।७३१ ॥ १७३२॥ ॥७३३॥ xt
SR No.009767
Book TitleAgam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages164
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 38, & agam_panchakalpa_bhashya
File Size3 MB
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