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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० पंचकप्पो - (२०६९) ||२१६९॥ ॥२१७०॥ ||२१७१॥ |२१७२॥ ॥२१७३॥ २१७४१D ||२१७५|| ॥२१७६|| (२१६१) सुयनाणपमाणेण उ गहिय असुद्धेऽविहोइ सुद्धोउ अहवाविउ छद्दसया सोलस उपायणादोसा (२१७०) एएसि सब्बेसि हणपयणकिणादिनवहिं कोडीहि कयकारियाणुमोदित एसा तिगवड्ढिया सोही (२१७१) दंसणनाणचरिते तवपवयणसव्य समिति तिहिं गुत्तो हतरागदोसनिम्ममखमदमनियमट्टिओ निचं (२१७२) तदुभयकप्पो आहुणा एते चिय दव्यं भावकप्पाउ दोण्णवि मिलिया एते तदुभयकप्पोइमो सोय (२१७३) आहारे अडविहे सेझोयहि पंच पंचग विसोही दसणचरित्तगुत्तो तवसमितिगुणेहिं सोहे हो ति (२१४४) असणादीओ चउहा उवकारिचउब्विहोयतस्सेव एसऽविहाहारो परूवणा तस्सिमा होइ (२१७५) असणंतु ओदणादी तदुवकारी उ खीरकुसणादी पाणं तुपाणमेव उ कप्पूरादी उ उवकारी (२१७६) खाइम फलाइयंतू सुत्तादी होति तदुवकारीउ साइम तंबोलादी चुण्णादी तदुवकारीउ (२१०७) एवं आहारादी उग्गमउप्पायणेसणासुद्धे उप्पाए दसणादीहिं जुत्तो अहवा तदट्ठाए (२१७८) विरती य अविरती या विरयाविरतीय तिविह करणं तु एक्केक्कं होइ दुहा आहे य अभिग्गहे चेव (२१७९) विरतीकरणं ओहे पंचैव महब्बया मवंती उ होति अभिग्गहकरणं पिंडविसुद्धादि नेगविहं (२१८०) अहवा ओहे संजमो विभागओ होइ सत्तरसभेदो अविरति असंजमोहे अट्ठारस अभिग्गहे इणमो (२१८१) पाणइवाए मोसे अदत्त मेहुण परिग्गहे चेय कोहमान भय मायलोमे पेजे दोसे तहा कलहे (१९८२) अब्मक्खाणे पेसुन्न अरतिरईचेव मायामोसेय मिच्छादसणसल्ले अट्ठारस अभिग्गहे एस (२१८३) विरताविरतीए पुण आहेण अनुव्यया मवे पंच उत्तरगुणा अभिग्गह हवंति सिक्खावता सत (२१८४) एत्यं पुण अहियारो विरतीकरणेण होइ दुविहेणं जह तेसु अतीयारो न होति तह ऊपयतियवं (२१८५) उज्जामरक्खियाणं महव्ययाणं कओहवति पीला भन्नति आहारादिहि तिहिं पीडा होतऽसुद्धेहि R१७७॥ ।।२१७८||* ॥२१७॥ ||२१८०11 ||२१८१॥ ॥२१८२॥ ॥२१८३॥ ॥२१८४॥ ॥२१८५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.009767
Book TitleAgam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages164
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 38, & agam_panchakalpa_bhashya
File Size3 MB
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